पिछली एक पोस्ट पर
टिप्पणी में पद्मावती ने बड़े पते की बात कही -
" इस ब्लॉग के जरिए जो फायदा में सबसे ज्यादा देख रही हूं- युवा वर्ग के खान-पान और लाइफ स्टाइल का सही होना, जो कि बुरी तरह से बिगड़ता जा रहा है। हम बड़े भी (या ही?) जिम्मेदार हैं। स्कूल की कैंटीन से लेकर शॉपिंग और मूवी प्रेग्राम का अंत चटपटा खाने से होता है। मुझे याद है मेरी मां ऐसे किसी प्रोग्राम के दिन खाने की पूरी तैयारी करके जाती थी। खोमचे वाले पर हमारी नजर पड़ते ही कहतीं- घर में कोफ्ते बने हैं। और बस, हम सब घर चल पड़ते। हमारी जिम्मेदारी है बच्चों को सही खानपान और रहन-सहन के तरीके सिखाने की।" तो आज इसी मुद्दे पर बात आगे बढ़ाते हैं। आखिर हम खाना खाते ही क्यों हैं, हम जो खाते हैं उसका क्या होता है और खाने का कैंसर से क्या रिश्ता है। हर इंसान एक साल में औसतन 500 किलोग्राम खाना खाता है यानी हर दिन कोई सवा किलोग्राम। यह खाना हमारे शरीर की बढ़त में, कहीं टूट-फूट हो तो उसकी मरम्मत में और दिन भर के कामों में शरीर को चालू रखने के लिए ईंधन के तौर पर काम आता है। बढ़त औत चोट भरने के लिए प्रोटीन ज्यादा काम आता है और ईंधन के तौर पर ज्यादा कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ - वसा, चीनी यानी फैट और कार्बोहाइड्रेट।

हम जो भी खाते हैं, वह पेट में हज़म होकर ऊर्जा बनाता है। जरूरत से ज्यादा ऊर्जा शरीर में रह नहीं सकती इसलिए शरीर अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट को फैट में बदलकर आड़े वक्त के लिए बचा कर कई जगहों पर जमा करके रख देता है। यही होती है चर्बी या मोटापा।
खाने में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और चर्बी के अलावा रेशे, अनेक विटामिन, लवण जैसे कई हिस्से होते हैं जिनकी क्रियाएं आपस में संबंधित और एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इनकी गतिविधियां कोशिकाओं के भीतर रासायनिक क्रियाओं के रूप में होती हैं और कैंसर भी कोशिका के भीतर रासायनिक गड़बड़ियों से पैदा होने वाली बीमारी है। यानी खान-पान का हमारे शरीर में कैंसर होने से सीधा संबंध है।
अनुमान है कि विभिन्न कैंसरों से होने वाली 30 फीसदी मौतों को लगातार सेहतमंद खान-पान के जरिए रोका जा सकता है। लेकिन फिर ध्यान दिला दूं, कैंसर हो जाने के बाद सिर्फ सुधरे खान-पान के जरिए इसे ठीक नहीं किया जा सकता। इंटरनैशनल यूनियन अगेन्स्ट कैंसर
(यू आई सी सी) ने अध्ययनों में पाया कि एक ही जगह पर रहने वाले अलग खान-पान की आदतों वाले समुदायों में कैंसर होने की संभावनाएं अलग-अलग होती हैं। उनकी खासियत का संबंध कैंसर के प्रकार से भी होता है। ज्यादा चर्बी खाने वाले समुदायों में स्तन, प्रोस्टेट, वृहदांत्र (कोलोन) और मलाशय (रेक्टम) के कैंसर ज्यादा होते हैं।
खाने की सामग्री में शामिल खाद्य तत्वों के अलावा बाहरी तत्व, जैसे- प्रिजर्वेटिव और कीटनाशक रसायन, उसे पकाने का तरीका यानी जलाकर ((ग्रिल करके), तेज आंच पर देर तक पकाना आदि, और उसमें पैदा हुए फफूंद या जीवाणु यानी बासीपन आदि भी कैंसर को बढ़ावा देते हैं।
यानी खाद्य सुरक्षा और खाने की सुरक्षा दोनों का ही कैंसर की संभावना से गहरा संबंध है। विकसित देशों में अतिपोषण की समस्या है जबकि विकासशील देशों में कुपोषण की जब जरूरी पोषक तत्वों की कमी से शरीर किसी बीमारी से लड़ने में पूरी तरह सक्षम नहीं होता। यह स्थिति शरीर को ज्यादा कैंसर प्रवण बना देती है।
यू आई सी सी की
गाइडलाइंस के मुताबिक-

1. जीवन भर पेड़-पौधों से बना विविधता भरा, रेशेदार खाना- फल, सब्जियां, अनाज खाइये।
2. चर्बी वाली खाने की चीजों से परहेज करिए। मांस, तला हुआ खाना या ऊपर से घी-तेल लेने से बचना चाहिए।
3. शराब का सेवन करना हो तो सीमित हो।
4. खाना इस तरह पकाया और संरक्षित किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद, जीवाणु न पैदा हो सकें।
5. खाना बनाते और खाते समय अतिरिक्त नमक डालने से बचें।
6. शरीर का वज़न सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो, इसके लिए खाने और कैलोरी खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाली चीजें कम मात्रा में खाएं, नियमित कसरत करें।
7. विटामिन और मिनरल की गोलियां संतुलित और परिपूर्ण भोजन का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं। विटामिन और मिनरल की प्रचुरता वाले विविध खाद्य पदार्थ ही इस जरूरत को पूरा कर सकते हैं।
8. इन सबके साथ पर्यावरण से कैंसरकारी जहरीले पदार्थों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान,
तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, दर्द निवारक और दूसरी दवाइयां खुद ही, बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ने जैसे अभियानों की भी सख्त जरूरत है, अगर हम कैंसर से बचना चाहते हैं।