आज, बुधवार 28 अक्टबर, 2009 को दैनिक भास्कर के 'समय' पेज पर मेरा यह लेख छपा है। उसे नीचे दे रही हूं। हमारे देश में एक लाख में से 30 से 33 महिलाओं को स्तन कैंसर हो रहा है और अनुमान है कि शहरों में हर 8-10 महिलाओं में से एक को और गांवों में हर 35-40 में एक को यानी औसतन हर 22 वीं महिला को अपने जीवनकाल में कभी न कभी स्तन कैंसर होने की संभावना होती है। इस समय स्तन कैंसर के कोई एक लाख नए मामले हर साल दर्ज हो रहे हैं और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) का अंदाज़ा है कि सन 2015 तक यह आंकड़ा ढाई लाख का होगा। इस तथ्य पर भी गौर करना चाहिए कि गांवों में ऐसे कई मामले रिपोर्ट भी नहीं होते।
पहले स्तन कैंसर विकसित देशों की, खाते-पीते परिवारों की महिलाओं की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब हर वर्ग की महिलाओं में देखी जा रही है। बदले समय में शहरी भारतीय महिलाओं में भी स्तन का कैंसर सबसे आम हो गया है।इन संख्याओँ के बीच सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा यह है कि स्तन कैंसर के 50 फीसदी मरीजों को इलाज करवाने का मौका ही नहीं मिल पाता।
आंकड़ों को जाने दें तो भी हमारे यहां स्तन कैंसर का परिदृष्य भयावह है। इसके बारे में जागरूकता की और इसके निदान और इलाज की सिरे से कमी के कारण ज्यादातर मामलों में एक तो मरीज इलाज के लिए सही समय पर सही जगह नहीं पहुंच पाता। दूसरे इसके महंगे और बड़े शहरों तक ही सीमित इलाज के साधनों तक पहुंचना भी हर मरीज के लिए संभव नहीं।
यानी ज्यादातर मरीजों के बारे में सच यह है कि न इलाज इन तक पहुंच पाता है, न ये इलाज तक पहुंच पाते हैं। और जब तक मरीज कैंसर का इलाज दे सकने वाले अस्पताल तक पहुंचने में कामयाब होता है, उसका कैंसर बेकाबू हो गया रहता है। और अगर नहीं, तो पैसे की कमी के कारण वह इलाज बीच में ही बंद कर देता है। कई बार तो समय पर सही अस्पताल पहुंच कर पूरा खर्च करने के बाद भी कैंसर ठीक नहीं हो पाता। कारण- हमारे देश में कैंसर क विशेषज्ञता और इलाज की सुविधाओँ की बेतरह कमी।
ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या करें कि हालात बेहतर हों। तो, हम समस्या की शुरुआत में ही बहुत कुछ कर सकते हैं। और यही सबसे जरूरी भी है कैंसर को काबू में करने के लिए। कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है ।- जल्द पहचान। जितनी शुरुआती अवस्था में कैंसर की पहचान होगी, इलाज उतना ही सरल, सस्ता, छोटा और सफल होगा। इसकी पहचान के बारे में अगर व्यक्ति जागरूक हो, अपनी जांच नियमित समय पर खुद करे तो मशीनी जांचों से पहले ही उसे बीमारी के होने का अंदाजा हो सकता है।
कैंसर की खासियत है कि यह दबे पांव आता है, बिना आहट के, बिना बड़े लक्षणों के। फिर भी कुछ तो सामान्य लगने वाले बदलाव कैंसर के मरीज में होते हैं, जो कैंसर की ओर संकेत करते हैं और अगर वह मरीज सतर्क, जागरूक हो तो वहीं पर मर्ज को दबोच सकता है।
संपन्न देशों में क्लीनिकल जांच, स्तन स्वयं परीक्षा के अलावा 40 साल में और फिर उसके बाद हर दूसरे साल और 50 की उम्र के बाद हर साल मेमोग्राफी यानी मशीन से स्तन की जांच की जाती है जिससे छोटी-सी गांठ या बदलाव भी पकड़ में आ सके। लेकिन भारत में बहुत ही कम लोग हैं जो नियमित रूप से इस खर्च को वहन कर सकते हैं, वह भी कैंसर की महज संभावना को जानने के लिए। ध्यान देने की बात यह है कि मेमोग्राफी स्तन कैंसर को रोकने का तरका नहीं है, न ही इसका इलाज है। यह सिर्फ कैंसर को जल्द पहचानने का मशीनी तरीका है, जो कभी गलत रिपोर्ट भी दे सकता है।
मेमोग्राफी मशीन की सेंसिटिविटी औसतन 80 फीसदी होती है। यानी मशीन सौ में से बीस मामलों में कैंसर को नहीं पकड़ पाती, फॉल्स नेगेटिव रिपोर्ट देती है। अमरीका में नैशनल कैंसर इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि मेमोग्राम हर पांच में से एक कैंसर के मामले को पकड़ने में नाकाम रहता है। डॉक्टरों का एक स्कूल यहां तक मानता है कि मेमोग्राफी का खास फायदा नहीं है, क्योंकि जितनी बड़ी गांठ को उस मशीन से देखा जा सकता है, उस स्टेज पर तो महिलाएं अपनी जांच करके भी गांठ और बदलाव आदि का पता लगा सकती हैं। इसके अलावा उस मशीन से जो रेडिएशन निकलता है वही कई बार कैंसर की शुरुआत का कारण बन सकता है।
इस लिहाज से हमारे देश में और भी जरूरी हो जाता है कि सभी महिलाएं अपने स्तन की स्वयं परीक्षा करना सीख लें और महीने में सिर्फ दस मिनट खर्च करके यह जांच करें। कम सुविधाओं के बीच अपनी सेहत का इस तरह ख्याल रख कर महिलाएं अपनी जिंदगी बचा सकती हैं। पुरुषों के लिए भी जरूरी है कि वे इस बीमारी के बारे में जानें ताकि समाज में फैले सैकड़ों भ्रम दूर हो सकें। लोग इसे दुर्भाग्य, अपशकुन, किन्हीं कुकर्मों का फल या मारक बीमारी न समझ कर किसी भी दूसरी बीमारी की तरह देखें और इसके इलाज के लिए प्रस्तुत हों।
अमरीका में 1993 से अक्टूबर को स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाना शुरू किया और बाकी दुनिया ने भी इसे अपना लिया। दुनिया में गुलाबी रिबन स्तन कैंसर जागरूकता का प्रतीक मान लिया है। इसे भले ही कोई दिखावा या विदेशी रस्म कहे, लेकिन यह मानना ही पड़ेगा कि हमारे देश में गुलाबी रिबन की जरूरत सभी को है।