Wednesday, October 22, 2008

तानाशाह हिटलर के शुक्रगुज़ार हैं कैंसर के मरीज़

जर्मनी के नाज़ी तानाशाह हिटलर की कैंसर के मरीजों को एक बड़ी देन है। हालांकि वे चले थे बुराई करने, अनेकों के साथ बुरा तो हुआ पर कुछेक का भला भी हो गया। नहीं, ज्यादा पहेलियां बुझाने का मेरा कोई इरादा नहीं है, बस एक कहानी सुनानी है। तो, हिटलर ने यहूदियों को मारने के लिए कई तरीके ईजाद किए। सैकड़ों को एक साथ मारने का उसका एक तरीका था- गैस चेंबर। झुंड-के-झुंड यहूदियों को बड़े-से हॉल में बंद कर देना और उसमें जहरीली गैस छोड़ना, जिसे सूंघ कर सबका काम तमाम हो जाए।

कुछेक बार ऐसा हुआ कि गैस-चेंबरों की जहरीली गैस सूंघने के बाद भी कुछ लोग जिंदा रह पाए और जान बचाकर निकल भागे। उन भागने वालों में कुछ कैंसर के मरीज भी थे। देखा गया कि गैस चेंबर से बचे कैंसर के मरीजों की हालत में अचानक चमत्कारी सुधार होने लगा। बाद में पता लगा कि उन जहरीली गैंसों से उनके शरीर की कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो गईं। और इस तरह खोज हुई कैंसर को मारने वाले जहरीले रसायनों की। इन मारक रसायनों का इस्तेमाल कैंसर के मरीजों की जान बचाने के लिए होने लगा।


Auschwitz gas chamber









Aftermath



Inside a gas chamber


ये रसायन यानी कीमोथेरेपी की दवाएं जहरीली तो अब भी उतनी ही हैं, लेकिन अब यह भी पता लग गया है कि सबसे अच्छे परिणाम पाने के लिए वे कितनी मात्रा में और कैसे दी जाएं और उनके बुरे असर कम करने के लिए क्या-क्या किया या न किया जाए।

इस तरह की अब तक सैकड़ों दवाएं खोजी जा चुकी हैं। इनमें से कुछ दवाएं दूसरी एक या दो दवाओं के साथ दिए जाने पर कैंसर के खिलाफ ज्यादा कारगर साबित होती हैं। कीमोथेरेपी की इस पद्यति को कॉम्बिनेशन कीमोथेरेपी कहते हैं।

इन दवाओं का चुनाव कैंसर के प्रकार अवस्था और शरीर के अंग के आधार पर (और हां, हिंदुस्तान में खास तौर पर सरकारी अस्पतालों में पहुंचे गरीब मरीजों के लिए उनकी माली हालत के आधार पर!) किया जाता है। इन्हें मरीज के रक्त-संचार तंत्र में डाला जाता है जहां से यह रक्त नलियों के जरिए पूरे शरीर में फैल जाती हैं।

5 comments:

सुजाता said...

और हां, हिंदुस्तान में खास तौर पर सरकारी अस्पतालों में पहुंचे गरीब मरीजों के लिए उनकी माली हालत के आधार पर!)
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मेरे लिये यह वाक्य ध्यान खींचने वाला था ।

Anonymous said...

मेरे विचार से इस लेख को राज ठाकरे को जरूर पढ़ना चाहिए। बीमारी उन्हे भी है।

आर. अनुराधा said...

सुजाता, आपने इस पोस्ट में भी वही लाइन चुनी टिप्पणी के लिए!

अंशुमाली का कटाक्ष बेहद तीखा रहा। ऐसे one-liners ही सीधी चोट करते हैं।

अभिषेक मिश्र said...

Rochak jaankari di aapne. Dhanyawad.

प्रकाश गोविंद said...

आज पहली बार आया हूँ ....

आपकी नयी पोस्ट कब आयेगी ?
क्या आपने ब्लागिंग से वैराग्य तो नहीं ले लिया ?

हर हाल में शुभकामनाएं !

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