इन पृष्ठों पर कैंसर के रिस्क फैक्टर्स यानी कैंसर की संभावना बढ़ाने वाले कारकों के बारे में चर्चा हुई है। लेकिन कैंसर का एक और रिस्क फैक्टर है जिसके बारे में हम लोकोक्तियों/कहावतों में तो कई बार कहते हैं लेकिन उसे भाषा की सुंदरता बढ़ाने वाले अलंकार से ज्यादा नहीं समझते। दिल के किसी पुरानी चोट/दर्द के ठीक होने की सूरत नहीं नज़र आती तो हम अक्सर कहते हैं कि जो पहले ज़ख्म था, अब नासूर बन गया है। नासूर यानी कैंसर। लंबे समय का दिल का जख्म या दुख जब ठीक नहीं होता तो सिर्फ दिल में नहीं शरीर में भी नासूर बना सकता है।
इज़राइल में रिसर्चरों की एक टीम ने 255 स्तन कैंसर की मरीज़ों और 367 स्वस्थ महिलाओं के जीवन में बीमारी शुरू होने के पहले खुशी, आशावादिता, तनाव, अवसाद जैसी स्थितियों के आंकड़े जुटाए। डाक्टरों ने पाया कि जिन महिलाओं के जीवन में एक या एक से ज्यादा बड़े दुख की घटनाएं हुईं उन्हें कैंसर की संभावना ज्यादा थी। जबकि आम तौर पर सामान्य, खुशमिजाज़, आशावादी रहने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर कम हुआ।
उनका कहना है कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम), हार्मोन और रोग प्रतिरक्षा तंत्र आपस में संबंधित हैं और व्यक्ति का व्यवहार और बाहरी कारक इनकी कार्यक्षमता पर असर डालते हैं।
तो, हम बाकी सकारात्मक कोशिशों के साथ साथ- खुश रहने और कैंसर दूर भगाने के इस मंत्र को भी याद रखें ।
7 comments:
कैंसर पर अच्छी बातचीत. आभार अनुराधा
क्या अच्छा होता कि आप का यह संदेश दूर -दूर तक ,जन -जन तक पहुचता और सभी लाभान्वित होते .ऐसे जनों पयोगी लेखों की मुझे तलाश रहती है.
कैंसर जैसी बीमारी के प्रति आपके जागरूकता अभियान के लिए आपका धन्यवाद्
कैंसर जागरूकता का संदेश फैलाने के लिए ही ब्लॉग को माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया है। अब कुछ जिम्मेदारी आप छोड़ी है कि इसे और लोगों तक पैलाएं। तभी इसके जन-जन तक फैलने का मकसद पूरा हो पाएगा।
@ आशीष, मिश्रा जी, me - समाज की इस चिंता में मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद
बढ़िया पोस्ट और इस के साथ ही साथ उस हंसी से लोटपोट हो रही बुजुर्ग महिला की मुस्कान भी तो इतनी इंफैक्शियस लगी। बहुत अच्छा लिखा ---काश, लोग इस तरह की पोस्टों से प्रेरित होकर बिना वजह खुश रहना शुरू कर दें।
अच्छा लिखा है, कैंसर जागरूकता का संदेश फैलाने के लिए आपका आभार !
दुख का भी कैंसर से ताल्लुक है,सचमुच पता नहीं था। महिला की फोटो वाकई शानदार है।
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