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Sunday, October 30, 2011

कैंसर रिसर्च फंडिंग और सपोर्ट का फंडाः व्यंग्य की नज़र से

अमरीका के नैशनल कैंसर इंस्टीट्यूट का कैंसर अनुसंधान पर सालाना बजट कोई 5 अरब डॉलर का है। इसके अलावा सूज़न के. कोमेन फॉर क्योर नाम की संस्था हर साल अनेक लोगों और एजेंसियों को लाखों डॉलर देती है ताकि स्तन कैंसर का इलाज ढ़ूंढा जा सके। बीसियों साल से दुनिया भर की लैबोरेटरीज़ में ये रिसर्च चल रहे हैं, लेकिन अभी तक कैंसर के इलाज के नाम पर 99 फीसदी वही इलाज हैं जो 20 साल पहले थे, थोड़े-बहुत फाइन-ट्यूनिंग के साथ। मरीज को इस रिसर्च का कुछ भी हिस्सा नहीं मिला है। इसके पीछे क्या पॉलिटिक्स हैं, भ्रष्टाचार है? न उसका इलाज का खर्च कम हुआ, न कैंसर से बचाव और न ही इलाज की सफलता का भरोसा।

इन कार्टूनों से कुछ समझ सकें तो बताएं।



Sunday, May 31, 2009

इसके बावजूद तंबाकू का सेवन करने वाले, धूम्रपान करने वाले खोपड़ी से खाली हैं....

आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस है।






# “पता है, स्मोकिंग दरअसल आप नहीं करते। सिगरेट ही स्मोकिंग करती है। आप तो सिर्फ सिगरेट का छोड़ा हुआ धुंआ पीते हैं।“


# “अब यह पूरी तरह साबित हो चुका है कि सिगरेट दुनिया में आंकड़ों के होने का एक प्रमुख कारण है।“











तंबाकू पर ज्यादा जानकारी के लिए 18 मई 2008 की पोस्ट देखें- कैंसर की दुनिया का आतंकवादी पत्ता: तंबाकू

Thursday, February 26, 2009

एक पहेली- बूझो तो जाने!

(इलाज पक्का था, मरीज ने पूरा करवाया भी, फिर भी बच न पाई?! बहुत नाइंसाफी है ये।

एक महिला डॉक्टर के पास अपनी जांच करवाने गई। तभी पता लगा कि उसे कैंसर हुआ है। डॉक्टर ने कहा कि कोई चिंता की बात नहीं है। उसने अपने मरीज को स्तन कैंसर का ताजातरीन इलाज तस्कीद कर दिया। इस इलाज के बारे में साबित हो चुका था कि यह स्तन कैंसर का सौ फीसदी प्रभावी, शर्तिया इलाज है। आम जनता और दुनिया भर के डॉक्टर भी इससे सहमत थे।

डॉक्टर ने उस महिला को बताया कि यह बिना साइड-इफेक्ट वाला, सुरक्षित, सस्ता और प्रभावी इलाज है। और उसकी सारी बातें सच भी थीं। उस महिला का अगले दिन से ही इलाज शुरू हो गया, उसी नयी दवा से। लेकिन पूरे इलाज के बावजूद कुछ समय बाद उस महिला की कैंसर से मौत हो गई।

वह इलाज सौ-फीसदी प्रभावी और जांचा-परखा था। फिर उस मरीज की मौत क्यों हो गई?


जवाब: वह इलाज स्तन कैंसर के लिए सौ फीसदी प्रभावी था, पर दूसरे प्रकार के कैंसरों के लिए नहीं। पहेली में कहीं नहीं कहा गया है कि उस महिला को स्तन कैंसर था। दरअसल उसे किसी और जगह का कैंसर था।

Saturday, July 5, 2008

यहां भी हंसने से बाज़ नहीं आता इंसान!

कई तकलीफों का मुफ्त इलाज है हंसी। ज़ाहिर है, कैसर होने की खबर पाने के बाद कोई हंसता हुआ डॉक्टर के कमरे से नहीं निकलता। लेकिन ये भी सच है कैंसर हजारों बार हंसने के मौके देता है। शर्त ये है कि दिल होना चाहिए, अपनी हालत पर हंसने का और दूसरों को हंसने देने का। हंसी कैंसर से जुड़ी चिंताओं को भुलाने का मौका देती है और मरीजों की जिंदगी के अंधेरे कोनों तक भी पहुंचने के लिए रौशनी की किरण को रास्ता बताती है। एक बीमारी ही तो हुई है, उसकी चिंता में आज जिंदगी जीने से क्यों रुका जाए भला! और अगर सचमुच जिंदगी कम बाकी है तब तो और भी जरूरी है कि सब कुछ किया जाए। भरपूर जी भी लिया जाए, जल्दी-जल्दी। ताकि कुछ बाकी न रह जाए।

तो जनाब पेश-ए-खिदमत हैं, कैंसर की दुनिया के कुछ चुटकुले। इनमें से कुछ अपने, कुछ उधार के हैं।



* सवाल- एक व्यक्ति जिसे बार-बार लिंफोमा (लसीका ग्रंथि का कैंसर) होता है?
जवाब- लिंफोमैनियाक।

* -गेहूं की कोमल बालियों का रस कैंसर को रोकता है।
सच जनाब, कभी घोड़े को कैंसर होते सुना है?

* -गाजर का सेवन कैंसर से बचाता है।
-सच जनाब, कभी खरगोश को कैंसर होते सुना है?

* -कैंसर कोई हंसी ठट्ठा नहीं है।
पूछिए उससे जो कैंसर से मर चुका है।

*-कैंसर बहुत तकलीफदेह होता है, सच कहा।
मेरी पत्नी की मौत कैंसर से ही हुई थी।
अब अपने हाथ से पका खाना खाने की असहनीय पीड़ा हर दिन झेल रहा हूं।

* -अगर बॉस या कंपनी से बदला लेना है, तो केस ठोक दीजिए कि नौकरी में तनाव की वजह से कैंसर हो गया। और देखिए मज़ा।

* -गठिया के दर्द से परेशान कोई बूढ़ा कैंसर के जवान मरीज को देखकर रश्क करता है- इसे मेरी तरह बुढ़ापा नहीं देखना पड़ेगा।
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