वैसे तो धुआं पीना कई जगहों पर मना हो गया है। फिर भी पीने वाले को तो सिगरेट-बिड़ी पीनी ही होती है। भई, जिसको पीना है, वो कहीं भी जाकर अपनी तलब पूरी करेगा। भले ही कड़ी सर्दी में बाहर मैदान में खड़े होना पड़े या फिर कड़ी तपती गर्मी में मैदान में या सड़क पर पेड़ की एक पत्ता छांव भी न मिले। भले ही अपने मित्रों का झुंड छोड़कर अजनबियों के बीच खड़ा होना पड़े या फिर नो-स्मोकिंग जोन के अंदर पकड़े जाने पर इज्जत जाती रहे। और ये सब एक दिन की नहीं, रोज-ब-रोज की बात है।
एक जमाना था जब सिगरेट पीना स्टाइल माना जाता था, शान की निशानी मानी जाती थी। फिल्मों के हीरो स्टाइल से धुआं छोड़ते हुए ‘अदाएं’ दिखाते थे और दर्शक फिदा हुए जाते थे। पर आज समय बदल गया है। अब फिल्मों में सिगरेट पीना टशन नहीं बल्कि टेंशन की निशानी बन गया है। या तो विलेन पिएगा या फिर परेशान-हाल हीरो। कोई स्वस्थ-प्रसन्न चरित्र फिल्मों में धुआं करता कम ही दिखता है।
आज भी सोचिए कोई लती बुजुर्ग धुंए की तलब में अपने दफ्तर से निकल कर दूर चला जाता है, काम-काज, दफ्तर के भीतर के अनुकूलत वातावरण को छोड़कर। छुपकर जिंदगी को धुंए में उड़ाने के लिए। और वहां से लौटता है, एक बदबू का भभका लेकर जिसे हर कोई पास से गुजर कर महसूस कर सकता है, नाक भौं सिकोड़ सकता है।
कोलंबस के जमाने से भी पहले से अमरीकी रेड इंडयन नशे के लिए तंबाकू की पत्तियां जलाकर धुंआ पीना जानते थे। लेकिन उसी अमरीका में मार्लबोरो सिगरेट कंपनी के अभिमानी मालिक की जान उसी की कंपनी की बनाई सिगरेट के धुंए ने ले ली। हमारे देश में पुरुषों के कैंसर के मामलों में 45 फीसदी मुंह, श्वास नली या फेफड़ों का कैंसर होता है। इनमें 95 फीसदी बीमारी का कारण तंबाकू और धूम्रपान है।
अब सिगरेट से लोगों का तिरस्कार ही मिलता है, और ज्यादा समय होने पर लती होते देर नहीं लगती और लोग उसे निरीह, बीमार समझने लगते हैं। यानी सिगरेट पीने वाला न तो ‘हॉट’ लगता है, और न यह कोई ‘कूल’ अदा है।
इस बारे में आपकी राय क्या है, जरूर बताएं।
नवंबर फेफड़ों के कैंसर की जागरूकता का महीना है।
This blog is of all those whose lives or hearts have been touched by cancer. यह ब्लॉग उन सबका है जिनकी ज़िंदगियों या दिलों के किसी न किसी कोने को कैंसर ने छुआ है।
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Thursday, November 12, 2009
Sunday, May 31, 2009
इसके बावजूद तंबाकू का सेवन करने वाले, धूम्रपान करने वाले खोपड़ी से खाली हैं....
आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस है।


# “पता है, स्मोकिंग दरअसल आप नहीं करते। सिगरेट ही स्मोकिंग करती है। आप तो सिर्फ सिगरेट का छोड़ा हुआ धुंआ पीते हैं।“
# “अब यह पूरी तरह साबित हो चुका है कि सिगरेट दुनिया में आंकड़ों के होने का एक प्रमुख कारण है।“

तंबाकू पर ज्यादा जानकारी के लिए 18 मई 2008 की पोस्ट देखें- कैंसर की दुनिया का आतंकवादी पत्ता: तंबाकू


# “पता है, स्मोकिंग दरअसल आप नहीं करते। सिगरेट ही स्मोकिंग करती है। आप तो सिर्फ सिगरेट का छोड़ा हुआ धुंआ पीते हैं।“
# “अब यह पूरी तरह साबित हो चुका है कि सिगरेट दुनिया में आंकड़ों के होने का एक प्रमुख कारण है।“

तंबाकू पर ज्यादा जानकारी के लिए 18 मई 2008 की पोस्ट देखें- कैंसर की दुनिया का आतंकवादी पत्ता: तंबाकू
Friday, November 7, 2008
इन्हें ज़रा सांस तो लेने दो!
आज हमारे देश में राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर ये दोहराना सही होगा कि देश में पुरुषों के कैंसर के मामलों में 45 फीसदी मुंह, श्वास नली या फेफड़ों का कैंसर होता है और इनमें 95 फीसदी का कारण तंबाकू और धूम्रपान है। सरकार ने इस साल मई में धूम्रपान पर रोक लगाने के लिए कड़े नियम लागू कर दिए हैं, जिनका पालन, जाहिर है, आम तौर पर नहीं ही होता है।
कुछ तो सांस लीजिए, सिगरेट पीना बंद कीजिए।
यू-ट्यूब पर फेफड़ों को बचाने की धूम्रपान-विरोधी मुहिम का रियलिस्टिक वीडियो।-
कुछ तो सांस लीजिए, सिगरेट पीना बंद कीजिए।
यू-ट्यूब पर फेफड़ों को बचाने की धूम्रपान-विरोधी मुहिम का रियलिस्टिक वीडियो।-
Saturday, October 4, 2008
धूम्रपान पर कड़ी पाबंदी
दो अक्टूबर से सभी सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर पाबंदी लग गई है। इसे न मानने पर सज़ा का भी प्रावधान है। यह सभी की सेहत के लिए अच्छा है। खास बात यह है कि कई सर्वेक्षणों में लोगों ने समान रूप से इस पाबंदी का समर्थन किया है।
इस मसले पर घोस्ट बस्टर ने अपने ब्लॉग पर एक शानदार पोस्ट डाली है। उसके सुंदर चित्र, प्रवाहमय भाषा, खूबसूरत अभिव्यक्ति और रिच कंटेंट पढ़ कर मैं आपको भी उससे परिचित करवाने के लालच से बच नहीं पाई।
वे लिखते हैं- "आम जनता की और से सरकार के इस कदम का जबरदस्त स्वागत हुआ है. मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ९२% लोगों ने धूम्रपान निषेध के लिए कड़े क़दमों का स्वागत किया है
फ़िर भी इस बात को लेकर एक बड़ी बहस छिडी हुई है. बैन के पक्षधर और विरोधी तमाम तरह के तर्क दे देकर मैसेज बॉक्स और फोरम्स के पन्नों पर पन्ने रंगे जा रहे हैं. अपन तो बस इस बैन को जल्द से जल्द और सख्ती से लागू किए जाते देखना चाहते हैं. एक कम्युनिटी के रूप में स्मोकर्स के लिए अपने मन में जरा भी इज्जत नहीं. क्योंकि,
१. ये जानते हैं कि धूम्रपान इनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. मगर इन्हें परवाह नहीं.
२. इन्हें पता है कि ये इनके घर के अन्य सदस्यों, जो स्मोक नहीं भी करते, के लिए भी बुरा है, मगर ये आदत से मजबूर हैं.
३. स्मोकिंग से होने वाली विषैली गैसों का उत्पादन पूरे विश्व के पर्यावरण के लिए नुक्सान ही पहुँचाने वाला है, होता रहे इनकी बला से.
४. सार्वजनिक स्थानों पर किसी स्मोकर को धुंआ उडाते देखने का दृश्य अभद्रता का खुला प्रदर्शन लगता है...."
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
इस मसले पर घोस्ट बस्टर ने अपने ब्लॉग पर एक शानदार पोस्ट डाली है। उसके सुंदर चित्र, प्रवाहमय भाषा, खूबसूरत अभिव्यक्ति और रिच कंटेंट पढ़ कर मैं आपको भी उससे परिचित करवाने के लालच से बच नहीं पाई।
वे लिखते हैं- "आम जनता की और से सरकार के इस कदम का जबरदस्त स्वागत हुआ है. मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार ९२% लोगों ने धूम्रपान निषेध के लिए कड़े क़दमों का स्वागत किया है
फ़िर भी इस बात को लेकर एक बड़ी बहस छिडी हुई है. बैन के पक्षधर और विरोधी तमाम तरह के तर्क दे देकर मैसेज बॉक्स और फोरम्स के पन्नों पर पन्ने रंगे जा रहे हैं. अपन तो बस इस बैन को जल्द से जल्द और सख्ती से लागू किए जाते देखना चाहते हैं. एक कम्युनिटी के रूप में स्मोकर्स के लिए अपने मन में जरा भी इज्जत नहीं. क्योंकि,
१. ये जानते हैं कि धूम्रपान इनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. मगर इन्हें परवाह नहीं.
२. इन्हें पता है कि ये इनके घर के अन्य सदस्यों, जो स्मोक नहीं भी करते, के लिए भी बुरा है, मगर ये आदत से मजबूर हैं.
३. स्मोकिंग से होने वाली विषैली गैसों का उत्पादन पूरे विश्व के पर्यावरण के लिए नुक्सान ही पहुँचाने वाला है, होता रहे इनकी बला से.
४. सार्वजनिक स्थानों पर किसी स्मोकर को धुंआ उडाते देखने का दृश्य अभद्रता का खुला प्रदर्शन लगता है...."
पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
Sunday, May 18, 2008
कैंसर की दुनिया का आतंकवादी पत्ता: तंबाकू
शाकाहार और मांसाहार पर बहस लंबी चल सकती है लेकिन एक शाकाहार, बल्कि पत्ता है जिसका सेवन किसी भी रूप में कैंसरकारी है। यह मेरी पिछली पोस्ट का विरोधाभास लग सकता है लेकिन तंबाकू के बारे में यही सच है।
मुंह का कैंसर उन गिने-चुने कैंसरों में से है जिन्हें पूरी तरह रोका जा सकता है। यह ज्यादातर बाहरी कारणों से ही होता है जिनकी लगभग पूरी फेहरिस्त डॉक्टरों के पास है। अफसोस की बात है कि जानकारी की कमी से मुंह के कैंसर के मामले हमारे देश में लगातार बढ़ रहे हैं। योरोप और अमरीका में मुंह का कैंसर कुल मामलों में से 4-5 फीसदी है तो हिंदुस्तान में यह 45 फीसदी से ज्यादा। इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में कारण तंबाकू और उससे बने उत्पाद हैं।
यह स्थापित हो चुका है कि तंबाकू का लंबे समय तक सेवन कैंसर को खुला निमंत्रण है। पान मसाला जो तंबाकू सेवन का सबसे नया और तेजी से लोकप्रिय होता रूप है, सबसे ज्यादा कैंसरकारी साबित हुआ है। कुछ समय पहले गुजरात के एक कैंसर अस्पताल में 25 वर्ष तक की उम्र के युवाओं में मुंह के कैंसर का सर्वे किया गया। पता चला कि उनमें से हर पांच में से तीन पान मसाला खाने के आदी थे। उनमें से कुछ ने चार या पांच साल पहले पान मसाला खाना शुरू किया था तो कुछ को दो साल के व्यसन ने ही बीमार बना दिया।
तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए गए हैं। पान मसाला बनाने के लिए जब इसमें स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं तो उसमें कार्सिनोजेन्स की संख्या कई दहाइयों में बढ़ जाती है। दरअसल ये रसायन मुंह की नाजुक त्वचा को लगातार चोट पहुंचाते रहते हैं और कोशिकाओं के सामान्य विकास में रुकावट डालते हैं। ये व्यथित कोशिकाएं खुद में कुछ बदलाव लाकर उन पदार्थों के बुरे असर से बचने की कोशिश करती हैं। यह बदलाव ही उनके लिए मारक साबित होता है। बदलाव के बाद बनी कोशिकाओं का विकास, जाहिर है, असामान्य और अनियंत्रित होता है।
इस तरह बनी गांठ में कैंसर होने की संभावना होती है जो इलाज में देर होने पर फेफड़ों, जिगर, हड्डियों और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल कर जानलेवा हो जाता है।
सिगरेट, पान, तंबाकू, पान मसाला के अलावा पोषण में कमी, टेढ़े या नुकीले दांतों या गालों की भीतरी नरम चमड़ी को चबाने की आदत के कारण भी मुंह का कैंसर हो सकता है। लेकिन गले या श्वासनली के कैंसर का कारण अनिवार्यत: धूम्रपान और शराब ही है।
मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही दिखने लगते हैं। इसलिए उन्हें पहचान कर अगर इलाज कराया जाए और तंबाकू सेवन छोड़ने जैसे उपाय किए जाएं तो इससे बचा भी जा सकता है। मुंह के भीतर कहीं भी- मसूढ़ों, जीभ, तालु, होंठ, गाल, गले के पास लाल या सफेद चकत्ते या दाग दिखें तो सचेत हो जाना चाहिए। इसके अलावा आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ, गले में खराश, कोई बेवजह हुआ घाव जो ठीक न हो रहा हो जैसे बदलावों पर भी ध्यान देना चाहिए। खूब फल-सब्जियां और अंकुरित अनाज तो हैं ही ऐंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिनों के भंडार जो हमारी उपापचय प्रणाली में आजाद घूम रहे कैंसरकारी तत्वों की बेजा हरकतों पर लगाम लगाते हैं।
दुनिया भर में मुंह के कैंसर का प्राथमिक कारण तंबाकू और शराब ही हैं। अगर यह खत्म हो जाए तो मुंह का कैंसर भी लगभग पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
मुंह का कैंसर उन गिने-चुने कैंसरों में से है जिन्हें पूरी तरह रोका जा सकता है। यह ज्यादातर बाहरी कारणों से ही होता है जिनकी लगभग पूरी फेहरिस्त डॉक्टरों के पास है। अफसोस की बात है कि जानकारी की कमी से मुंह के कैंसर के मामले हमारे देश में लगातार बढ़ रहे हैं। योरोप और अमरीका में मुंह का कैंसर कुल मामलों में से 4-5 फीसदी है तो हिंदुस्तान में यह 45 फीसदी से ज्यादा। इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में कारण तंबाकू और उससे बने उत्पाद हैं।
यह स्थापित हो चुका है कि तंबाकू का लंबे समय तक सेवन कैंसर को खुला निमंत्रण है। पान मसाला जो तंबाकू सेवन का सबसे नया और तेजी से लोकप्रिय होता रूप है, सबसे ज्यादा कैंसरकारी साबित हुआ है। कुछ समय पहले गुजरात के एक कैंसर अस्पताल में 25 वर्ष तक की उम्र के युवाओं में मुंह के कैंसर का सर्वे किया गया। पता चला कि उनमें से हर पांच में से तीन पान मसाला खाने के आदी थे। उनमें से कुछ ने चार या पांच साल पहले पान मसाला खाना शुरू किया था तो कुछ को दो साल के व्यसन ने ही बीमार बना दिया।
तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए गए हैं। पान मसाला बनाने के लिए जब इसमें स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं तो उसमें कार्सिनोजेन्स की संख्या कई दहाइयों में बढ़ जाती है। दरअसल ये रसायन मुंह की नाजुक त्वचा को लगातार चोट पहुंचाते रहते हैं और कोशिकाओं के सामान्य विकास में रुकावट डालते हैं। ये व्यथित कोशिकाएं खुद में कुछ बदलाव लाकर उन पदार्थों के बुरे असर से बचने की कोशिश करती हैं। यह बदलाव ही उनके लिए मारक साबित होता है। बदलाव के बाद बनी कोशिकाओं का विकास, जाहिर है, असामान्य और अनियंत्रित होता है।
इस तरह बनी गांठ में कैंसर होने की संभावना होती है जो इलाज में देर होने पर फेफड़ों, जिगर, हड्डियों और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल कर जानलेवा हो जाता है।

सिगरेट, पान, तंबाकू, पान मसाला के अलावा पोषण में कमी, टेढ़े या नुकीले दांतों या गालों की भीतरी नरम चमड़ी को चबाने की आदत के कारण भी मुंह का कैंसर हो सकता है। लेकिन गले या श्वासनली के कैंसर का कारण अनिवार्यत: धूम्रपान और शराब ही है।
मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही दिखने लगते हैं। इसलिए उन्हें पहचान कर अगर इलाज कराया जाए और तंबाकू सेवन छोड़ने जैसे उपाय किए जाएं तो इससे बचा भी जा सकता है। मुंह के भीतर कहीं भी- मसूढ़ों, जीभ, तालु, होंठ, गाल, गले के पास लाल या सफेद चकत्ते या दाग दिखें तो सचेत हो जाना चाहिए। इसके अलावा आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ, गले में खराश, कोई बेवजह हुआ घाव जो ठीक न हो रहा हो जैसे बदलावों पर भी ध्यान देना चाहिए। खूब फल-सब्जियां और अंकुरित अनाज तो हैं ही ऐंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिनों के भंडार जो हमारी उपापचय प्रणाली में आजाद घूम रहे कैंसरकारी तत्वों की बेजा हरकतों पर लगाम लगाते हैं।
दुनिया भर में मुंह के कैंसर का प्राथमिक कारण तंबाकू और शराब ही हैं। अगर यह खत्म हो जाए तो मुंह का कैंसर भी लगभग पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
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