शाकाहार और मांसाहार पर बहस लंबी चल सकती है लेकिन एक शाकाहार, बल्कि पत्ता है जिसका सेवन किसी भी रूप में कैंसरकारी है। यह मेरी पिछली पोस्ट का विरोधाभास लग सकता है लेकिन तंबाकू के बारे में यही सच है।
मुंह का कैंसर उन गिने-चुने कैंसरों में से है जिन्हें पूरी तरह रोका जा सकता है। यह ज्यादातर बाहरी कारणों से ही होता है जिनकी लगभग पूरी फेहरिस्त डॉक्टरों के पास है। अफसोस की बात है कि जानकारी की कमी से मुंह के कैंसर के मामले हमारे देश में लगातार बढ़ रहे हैं। योरोप और अमरीका में मुंह का कैंसर कुल मामलों में से 4-5 फीसदी है तो हिंदुस्तान में यह 45 फीसदी से ज्यादा। इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में कारण तंबाकू और उससे बने उत्पाद हैं।
यह स्थापित हो चुका है कि तंबाकू का लंबे समय तक सेवन कैंसर को खुला निमंत्रण है। पान मसाला जो तंबाकू सेवन का सबसे नया और तेजी से लोकप्रिय होता रूप है, सबसे ज्यादा कैंसरकारी साबित हुआ है। कुछ समय पहले गुजरात के एक कैंसर अस्पताल में 25 वर्ष तक की उम्र के युवाओं में मुंह के कैंसर का सर्वे किया गया। पता चला कि उनमें से हर पांच में से तीन पान मसाला खाने के आदी थे। उनमें से कुछ ने चार या पांच साल पहले पान मसाला खाना शुरू किया था तो कुछ को दो साल के व्यसन ने ही बीमार बना दिया।
तंबाकू में 45 तरह के कैंसरकारी तत्व पाए गए हैं। पान मसाला बनाने के लिए जब इसमें स्वाद और सुगंध के लिए दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं तो उसमें कार्सिनोजेन्स की संख्या कई दहाइयों में बढ़ जाती है। दरअसल ये रसायन मुंह की नाजुक त्वचा को लगातार चोट पहुंचाते रहते हैं और कोशिकाओं के सामान्य विकास में रुकावट डालते हैं। ये व्यथित कोशिकाएं खुद में कुछ बदलाव लाकर उन पदार्थों के बुरे असर से बचने की कोशिश करती हैं। यह बदलाव ही उनके लिए मारक साबित होता है। बदलाव के बाद बनी कोशिकाओं का विकास, जाहिर है, असामान्य और अनियंत्रित होता है।
इस तरह बनी गांठ में कैंसर होने की संभावना होती है जो इलाज में देर होने पर फेफड़ों, जिगर, हड्डियों और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल कर जानलेवा हो जाता है।
सिगरेट, पान, तंबाकू, पान मसाला के अलावा पोषण में कमी, टेढ़े या नुकीले दांतों या गालों की भीतरी नरम चमड़ी को चबाने की आदत के कारण भी मुंह का कैंसर हो सकता है। लेकिन गले या श्वासनली के कैंसर का कारण अनिवार्यत: धूम्रपान और शराब ही है।
मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही दिखने लगते हैं। इसलिए उन्हें पहचान कर अगर इलाज कराया जाए और तंबाकू सेवन छोड़ने जैसे उपाय किए जाएं तो इससे बचा भी जा सकता है। मुंह के भीतर कहीं भी- मसूढ़ों, जीभ, तालु, होंठ, गाल, गले के पास लाल या सफेद चकत्ते या दाग दिखें तो सचेत हो जाना चाहिए। इसके अलावा आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ, गले में खराश, कोई बेवजह हुआ घाव जो ठीक न हो रहा हो जैसे बदलावों पर भी ध्यान देना चाहिए। खूब फल-सब्जियां और अंकुरित अनाज तो हैं ही ऐंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिनों के भंडार जो हमारी उपापचय प्रणाली में आजाद घूम रहे कैंसरकारी तत्वों की बेजा हरकतों पर लगाम लगाते हैं।
दुनिया भर में मुंह के कैंसर का प्राथमिक कारण तंबाकू और शराब ही हैं। अगर यह खत्म हो जाए तो मुंह का कैंसर भी लगभग पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
4 comments:
अनुराधा जी
इतनी उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
आभार इस जानकारी का.
एक ब्लड टेस्ट ही बता देगा, कैंसर है या नही
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3057790.cms
is link par cancer sambandhee 1 khabar hai. pad sakte hain.
धन्यवाद पूजा इस जानकारी को सबके साथ बांटने के लिए। मैंने भी वो खबर पढ़ी है और कोशिश है कि इस पर पूरी पोस्ट डाल सकूं, और जानकारी के साथ। साथ यूं ही बने रहिए।
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