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Wednesday, September 25, 2013

स्तन कैंसर से कोई नहीं मरता- यह सच है

स्तन कैंसर स्तन में शुरू होता है। जब तक यह स्तन तक सीमित है, इससे मरने का अंदेशा नहीं है।

जब तक स्तन कैंसर स्तन तक सीमित है, इसका इलाज भी अच्छी तरह से हो सकता है।

अगर स्तन कैंसर का इलाज समय पर न किया जाए तो यह स्तन से निकल कर हड्डियों, पेफड़ों, दिमाग, जिगर आदि में फैल जाता है।

स्तन कैंसर स्तन से बाहर के किसी अंग/अंगों में फैल जाए तो इसे स्टेज 4 या एडवांस स्टेज का या मेटास्टैटिक स्तन कैंसर कहते हैं।

हमारे देश में लोग यही समझते हैं कि स्तन कैंसर यानी मेटास्टैटिक स्तन कैंसर, क्योंकि मरीज जब पहले-पहल अस्पताल पहुंचते हैं तो उनमें से 80 फीसदी स्टेज 3 या 4 में होते हैं- यानी मामला हाथ से निकला ही समझो।

सिर्फ 20 फीसदी मरीज ही स्टेज 1 या 2 में अस्पताल पहुंच पाते हैं। इनके बचने, लंबा, स्वस्थ जीवन जीने की संभावना काफी बेहतर होती है।

लगभग 100 फीसदी मामलों में महिलाओं को खुद ही सबसे पहले पता चलता है कि उनके स्तन में कुछ बदलाव आए हैं जो सामान्य नहीं हैं। बिना किसी मशीनी जांच- मेमोग्राफी, एस आर आई, सीटी स्कैन के सिर्फ अपनी अंगुलियों से महसूस करके और आइने में देखकर जाना जा सकता है कि स्तन में कहीं कोई बदलाव, गड़बड़ी तो नहीं।

स्तन कैंसर जब स्तन में ही सीमित हो, तभी इसके प्रति सचेत होने की जरूरत है, ताकि बेहतर इलाज और बेहतर जिंदगी की गुंजाइश हो।


स्तन कैंसर जितनी जल्दी पहचाना जाता है, उसका इलाज उतना ही कम लंबा, कम खर्चीला, अपेक्षाकृत सरल और ज्यादा कारगर होता है। 

Monday, June 24, 2013

स्तन कैंसर के 12 आधारभूत लक्षण

स्तन कैंसर के लक्षणों पर नज़र रखना ही बुद्धिमानी है। फिर से तीन बाते दोहरा दूं कि-

1. स्तन कैंसर का पता सबसे पहले खुद को ही लगता है।

2. कैंसर का पता जितनी जल्दी चले, इलाज जितनी जल्दी हो पाए उतना ही ज्यादा सफल, सस्ता और आसान होता है। कैंसर की आशंका के बाद भी चुप बैठने का सीधा मतलब जान को जोखिम में डालना है।

3. हर महीने सिर्फ 10 मिनट का समय अपनी अंगुलियों से स्तनों की जांच के लिए तय करके अपने-आप को इस जोखिम में डालने से बचा जा सकता है।

शब्दों के मुकाबले चित्र ज्यादा बातें समझा सकते हैं। स्तन कैंसर के 12 आधारभूत लक्षणण ः


Sunday, October 16, 2011

आप भी हैं अपने हक में एक बड़े अभियान के हिस्सेदार

पिंक हो या ब्ल्यू, अपने को जानना, जागरूक होना सबसे महत्वपूर्ण है

अक्तूबर स्तन कैंसर माह के तौर पर दुनिया भर में मनाया जाता है, ताकि इसके बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। अमरीका में महिलाओं के मरने का एक बड़ा कारण यह है। हमारा देश भी अब हर तरह के कैंसर जिसमें स्तन कैंसर भी जोर-शोर से शामिल है, के मामले में पीछे नहीं है, और इसका दायरा बढ़ता ही जा रहा है। जागरूकता हमारे यहां भी बेहद जरूरी है।

स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता का पहचान का रंग गुलाबी है। इस पूरे महीने में कभी आप भी गुलाबी पहनें और अपने को इस बीमारी के बारे में जागरूक करें।

अपने शरीर को जानने-समझने और उसमें आए किसी भी बदलाव पर नजर रखने का एक अभियान चलाएं, जो कि कैंसर को जल्द पकड़ पाने और उसका इलाज सहज बनाने का सबसे कारगर और आसान तरीका है। सिर्फ एक दिन या एक महीने नहीं, जीवन भर। इसमें 'खर्च' होगा, सिर्फ आपका थोड़ा सा समय महीने- पंद्रह दिन में एक बार।

जरूर शामिल हों कैंसर जागरूकता, अपने प्रति जागरूकता के इस अभियान में। यह छोटा लगने वाला निजी प्रयास एक बड़े अभियान का हिस्सा है- याद रखिए।

Tuesday, August 2, 2011

कुत्ते धन ही नहीं जुटाते, कैंसर की पहचान भी कर सकते हैं

एक कुत्ते ने मैराथन दौड़ में अनजाने ही भाग लेकर कैंसर अनुसंधान के लिए हजारों डॉलर जुटा दिए। लेकिन एक दिलचस्प तथ्य यह है कि कुत्ते कैंसर की पहचान भी कर सकते हैं। उनकी सूंघने की शक्ति कैंसर जैसी असामान्य स्थिति को 'सूंघ' सकते हैं। इस तरह से कई लोगों को अपने कुत्तों की वजह से कैंसर होने का पता लगा।

एक थ्योरी यह कहती है कि कैंसर की रोगी कोशिकाओं में अलग तरह की दुर्गंध होती है जिसे कुत्ते पकड़ पाते हैं। और उस गंध से परेशान होकर वे परिवार के उस सदस्य के शरीर के उस हिस्से को लगातार चाटते-टटोलते रहते हैं। इससे व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए कि कुछ गड़बड़ है। इस तरह की घटनाओं में कुत्ते के बार-बार ध्यान खींचने पर लोग डॉक्टर के पास गए और उन्हें पता लगा कि उनके शरीर में कैंसर पनप रहा है।

कुछेक सप्ताह के प्रशिक्षण से ऐसे कुत्ते लोगों की सांस सूंघकर भी कैंसर के होने का पता दे सकते हैं। वे सांस में मौजूद कुछ खास रसायनों के अरबवें हिस्से की मौजूदगी को भी सूंघ कर पहचान सकते हैं।

दरअसल कैंसर कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं से अलग कुछ जैवरासायनिक त्याज्य पदार्थ छोड़ती हैं, जिन्हें कुत्ते सूंघ कर जान सकते हैं। स्तन और फेफड़ों के कैंसर को वे आसानी से पहचान पाते हैं। अब कुत्तों को पेशाब सूंघकर व्यक्ति में प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाने के लिए भी प्रसिक्षित किया जाने लगा है।

Sunday, April 5, 2009

आसां है कैंसर के डंक से बचे रहना

कैंसर का नाम सुनते ही कुछ बरसों पहले तक मन में एक डर-सा पैदा हो जाता था। वजह, इस बीमारी का लाइलाज होना। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब न सिर्फ कैंसर का इलाज मुमकिन है, बल्कि ठीक होने के बाद सामान्य जिंदगी भी जी जा सकती है। शर्त यह है कि शुरुआती स्टेज पर बीमारी की पहचान हो जाए और फिर उसका मुकम्मल इलाज कराया जाए। वैसे, अगर कुछ चीजों से बचें और लाइफस्टाइल को सुधार लें तो कैंसर के शिकंजे में आने की आशंका भी काफी कम हो जाती है।

कैंसर से बचाव और जांच के विभिन्न पहलुओं पर मेरी ये रिपोर्ट : आसां है कैंसर के डंक से बचे रहना

साथियो

ये मेरा ताजा लेख है जो आज के नवभारत टाइम्स के जस्ट जिंदगी पेज (पेज 9) पर छपा है। आप भी पढ़ें और अपनी राय दें।

Sunday, March 8, 2009

संक्षेप में जो आप जानना चाहते हैं स्तन कैंसर के बारे में

बदले समय में भारतीय महिलाओं में भी स्तन का कैंसर सबसे आम हो गया है। हर 22 वीं महिला को कभी न कभी स्तन कैंसर होने की संभावना होती है। शहरी महिलाओँ में यह संख्या और भी ज्यादा है।

खुद पहचानें
स्तन कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है- जल्द पहचान। आइने के सामने और शावर में या लेट कर स्तनों की हर महीने पीरियड के बाद खुद जांच करके देखें-

- स्तन या निप्पल के आकार में कोई असामान्य बदलाव।
- कोई गांठ, चाहे वह मूंग की दाल के बराबर ही क्यों न हो।
- स्तन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके के समान छोटे-छोटे छेद या दाने-से बनना।
- एक स्तन पर खून की नलियां ज्यादा स्पष्ट दिखने लगना।
- निप्पल भीतर को खिंचना, उसमें से दूध के अलावा कोई भी स्त्राव- सफेद, गुलाबी, लाल, भूरा, पनीला या किसी और रंग का, होना ।
- स्तन में कही भी लगातार दर्द होना।

जांच
• 40 की उम्र में एक बार और फिर हर दो साल में मेमोग्राफी करवानी चाहिए ताकि शुरुआती स्टेज में ही स्तन कैंसर का पता लग सके।
• ब्रेस्ट स्क्रीनिंग के लिए एमआरआई, अल्ट्रासोनोग्राफी भी की जाती है।
• एफएनएसी- किसी ठोस गांठ की जांच सुई से वहां की कोशिकाएं निकालकर की जाती है।

बचाव
- कसरत: हर हफ्ते सवा तीन घंटे दौड़ लगाने या 13 घंटे पैदल चलने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर की संभावना 23 फीसदी कम होती है।
- मातृत्व: बच्चे पैदा करना, वह भी सही उम्र में, और उसे स्तनपान कराना स्तन कैंसर को टालने का कारगर तरीका है।
- व्यसन: गुटका, तंबाकू और धूम्रपान ही नहीं, अल्कोहल भी स्तन कैंसर के रिस्क को बढ़ाता है। हर ड्रिंक का अर्थ है, कैंसर के खतरे में इजाफा।
- धूपस्नान: विटामिन डी की कमी का सीधा संबंध स्तन कैंसर से है। शरीर को हर दिन 1000 मिलिग्राम कैल्शियम और 350 यूनिट विटामिन डी मिलना चाहिए। 5-10 मिनट का धूपस्नान शरीर में विटामिन डी बनाने में मदद करेगा।
- कैलोरी में कटौती: रेड मीट और प्रोसेस्ड भोजन कम, होल ग्रेन, फल-सब्जियां ज्यादा खाना कैंसर से बचाव का रास्ता है। चर्बी से मिलने वाली कैलोरी कुल कैलोरी की 20 फीसदी तक रहे तो स्तन कैंसर की संभावना में 24 फीसदी की कटौती हो सकती है।
- छरहरी काया: शरीर पर छाई चर्बी ईस्ट्रोजन हॉर्मोन बनाती है जो स्तन कैंसर का कारण है। दुबला लेकिन सुपोषित होना आदर्श स्थिति है।

भ्रम न पालें
• कैंसर छूत की, संक्रमण से होने वाली बीमारी नहीं है। मधुमेह और उच्च रक्तचाप की तरह शरीर में खुद ही पैदा होती है।
• चोट या धक्का लगने से स्तन कैंसर नहीं होता। बल्कि कई बार चोट लगने पर इसकी तरफ ध्यान जाता है।
• 20 साल की युवती से लेकर मृत्यु की चौखट पर खड़ी बूढ़ी महिला तक किसी को भी स्तन कैंसर हो सकता है।
• स्तन कैंसर पुरुषों को भी होता है। 200 में से एक स्तन कैंसर का मरीज पुरुष हो सकता है।
• खान-पान और जीवनचर्या में सकारात्मक बदलाव करके कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है। लेकिन कैंसर हो जाने के बाद इसका प्रामाणिक इलाज ऐलोपैथी ही है।
• 93 फीसदी मामलों में स्तन कैंसर वंशानुगत बीमारी नहीं है।
• स्तन की 90 फीसदी गांठें कैंसररहित होती हैं, सिर्फ 10 फीसदी गांठों में कैंसर की संभावना होती है। फिर भी हर गांठ की फौरन जांच करानी चाहिए।

Thursday, October 16, 2008

खून की सरल जांच कैंसर होने का पता देगी

खून की जांच कराई और पता लगा लिया कि शरीर के किसी हिस्से में कैंसर की शुरुआत तो नहीं हो रही! आज की तारीख में सभी तरह के कैंसरों के लिए तो नहीं पर कुछेक के लिए यह जांच सुविधा उपलब्ध है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्दी ही बाकी तरह के कैंसर में भी ऐसी ही सरल जांच से काम बन जाएगा। कैंसर जैसी जटिल बीमारी के बारे में यह सोच पाना कठिन है कि सबसे सरल तरीका सबसे प्रभावी भी हो सकता है। कैंसर की पहचान के लिए ढेरों बड़ी-बड़ी महंगी मशीनें और दुरूह जांच हैं जो कुछेक गिने-चुने शहरों और अस्पतालों में ही उपलब्ध हैं। ऐसे में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी के शिकागो में हुए हालिया सम्मेलन में रिसर्चरों ने राय जाहिर की है कि कैंसर का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका हैं, खून की कुछेक बूंदें लेकर जांच करना।

खून से कैंसर का हाल जानने की तकनीक नई नहीं है। जिस तरह किसी महिला के खून में मौजूद प्रोटीनों की जांच करके उसके 10 दिन का गर्भ होने का पता भी लगाया जा सकता है, उसी तरह कैंसर की बेहद शुरुआती अवस्था में खून की जांच से ट्यूमर द्वारा छोड़ी गई कोशिकाओं पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन की जांच करके उसकी मौजूदगी का पता लगाया जा सकता है। ज्यादातर ट्यूमर पास-पास जुड़ी हुई कई परतों वाली ऐपीथीलियल कोशिकाओं से बने होते हैं। कैंसर कोशिकाओं की खास बात यह है कि वे एक जगह टिकती नहीं है और ट्यूमर से छिटक-छिटक कर तेजी से खून के जरिए दूसरी जगहों पर फैलने की कोशिश करती हैं। एक और दिलचस्प बात यह है कि कैंसर कोशिकाएं अविकसित, अधूरी, कमजोर और तेजी से विभाजित होने और उसी तेजी से मरते जाने वाली कोशिकाएं हैं। ऐसे में किसी जगह ट्यूमर बनने के पहले ही उससे निकल कर खून में आई ये अलग तरह की ऐपीथीलियल कोशिकाएं तुरंत पहचानी जा सकती हैं।

खून की जांच से कैंसर होने का पता देने वाली उसमें घूम रही अविकसित ऐपीथीलियल कोशिकाओं की मौजूदगी का पता लगा लेना काफी नहीं है। वैसे ही जैसे किसी जगह दुश्मन के सैनिकों की मौजूदगी का पता लगाना काफी नहीं। अगर उन्हें पकड़ कर पूछताछ भी की जा सके, उनके इरादों, योजनाओँ का भी खुलासा हो पाए तो बात बने। इसलिए नए तरह के परीक्षणों से वैज्ञानिक अब उन कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन के प्रकार की पहचान करके यह भी पता लगा पा रहे है कि वह जिस ट्यूमर से निकल रहा है उसकी प्रकृति क्या है। क्या वह तेजी से बढ़ने वाला है, किसी और अंग में फैलने की स्टेज पर है, या धीरे-धीरे बढ़ रहा अपनी ही जगह पर बना हुआ है। इससे डॉक्टरों को हर मरीज की जरूरत के मुताबिक सही समय पर सही इलाज करने में मदद मिलेगी। ऐसी तरकीब इसलिए और भी जरूरी है कि कैंसर के सामान्य इलाज के जहरीले साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा और मारक हैं। ऐसे में इलाज जितना सटीक होगा उतना ही कारगर, सस्ता, सुगम और कम साइड इफेक्ट पैदा करने वाला होगा।

ये जानना रोचक है कि अब ट्यूमर से निकली कोशिकाओं के डीएनए, आरएनए और प्रोटीन में मौजूद बदलावों की जांच करके ट्यूमर के भीतर की खबर लेना आसान हो गया है। इन जांचों की सबसे बड़ी खासियत है इनका आसान और सहज होना। आजकल सबसे आम जांच चलन में है फाइन नीडिल एस्पिरेशन साइटोलॉजी तकनीक या एफ एन ए सी। सरल शब्दों में कहें तो ट्यूमर की जगह से कुछ कोशिकाएँ सुई के जरिए खींच कर निकालना और फिर माइक्रोस्कोप के नीचे उनकी पड़ताल करके उनके आकार-प्रकार, रचना, संख्या आदि का पता लगाना। लेकिन यह जांच तभी की जा सकती है जबकि पहले ही कैंसर का अंदेशा हो, ट्यूमर की जगह का पता हो, वह कम-से-कम इतना बड़ा हो कि उसमें से कोशिकाएं सुई के जरिए निकाली जा सकें और सुई उस तक पहुंच सके। इस प्रक्रिया में एक खतरा कैंसर कोशिकाओं के जल्द फैलने का भी है। ट्यूमर के भीतर तक पहुंची सुई के सहारे कैंसर कोशिकाएं अब तक अनछुई परतों तक पहुंच कर आदतन वहां भी पैर जमाना शुरू कर सकती हैं। लेकिन रक्त निकालकर जांच करने में इस बात का कोई खतरा नहीं होता।

खून की जांच पर आधारित इन निदान तकनीकों से कैंसर की पहचान में कोई बड़ा बदलाव आ गया हो, ऐसा समझना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन डॉक्टरों को इनसे बहुत उम्मीदें हैं। कैंसर के बारे में बुनियादी बात यही है कि इसकी पहचान जितनी जल्दी होती है, इसका इलाज उतना ही सरल, कम खर्चीला और सफल होता है और इसके दोबारा होने की संभावना उतनी ही कम होती है। इसलिए इन तकनीकों के ज्यादा सटीक और भरोसेमंद बनाने की कोशिशें जारी हैं।

Wednesday, August 27, 2008

कैंसर पहेली - 2

इस हिस्से में त्वचा, कोलोन, प्रोस्टेट के कैंसर से जुड़े सवाल-जवाब। जवाब अंत में दिए गए हैं।

9. कोलोन कैंसर का संबंध जेनेटिक बीमारियों से है।
O सही
O गलत

10. प्रोस्टेट कैंसर की नियमित जांच करवाने की कोई जरूरत नहीं है।
O सही
O गलत

11. खून की जांच से प्रोस्टेट कैंसर का पता लग सकता है।
O सही
O गलत

12. त्वचा का कैंसर गोरे लोगों को ही होता है, कालों को नहीं हो सकता।
O सही
O गलत

13. जन्म के समय त्वचा पर ज्यादा तिल हों तो त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
O सही
O गलत

14. बचपन में ज्यादा धूप सेकने सा त्वचा के कैंसर से कोई संबंध नहीं है।
O सही
O गलत

9. परिवार में किसी को मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, ग्लैकोमा या कैंसर रहा हो तो कोलोन (मलाशय) कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

10. पुरुषों को 50 साल की उम्र से प्रोस्टेट कैंसर के लिए नियमित जांच करवानी चाहिए। परिवार में इसकी हिस्ट्री होने पर यह जांच 45 की उम्र में शुरू कर देनी चाहिए।

11. खून की पीएसए जांच से उसमें मौजूद एंटीजेन की मौजूदगी का पता लगता है। इस एंटीजेन के ज्यादा होने से प्रोस्टेट कैंसर का अंदेशा होता है।

12. त्वचा का कैंसर किसी को भी हो सकता है। गहरे रंग की त्वचा में मेलानिन पिगमेंट ज्यादा होता है जो सूर्य की पराबैंगनी (अल्ट्रावॉयलेट) किरणों को रोकता है। इसलिए त्वचा में ज्यादा मेलानिन हो तो कैंसर का खतरा कम हो जाता है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होता।

13. ज्यादातर तिल जन्म के बाद ही बनते हैं। लेकिन कुछ लोगों को जन्म से ही तिल होते हैं। पैदाइसी तिलों से त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

14. लंबे समय तक खाई तेज धूप त्वचा पर स्थाई असर डाल सकती है। बचपन में ज्यादा धूप खाने से बड़े होने पर मेलानोमा का खतरा बढ़ जाता है।

Thursday, June 19, 2008

कैंसर के होने का अंदाजा खुद भी लगा सकते हैं

खुद को आइने में हम रोज देखते हैं- लेकिन आम तौर पर श्रृंगार के लिए। क्यों न सेहत के लिए भी खुद को देखने की आदत डाल लें। जैसा कि पहले भी जिक्र आ चुका है- कैंसर बड़ी बीमारी है लेकिन अपनी सजगता से हम इसके इलाज को सफल और सरल बना सकते हैं- बीमारी का जल्द से जल्द पता लगा कर। कई बार डॉक्टर से पहले हमें ही पता लग जाता है कि हमारे शरीर में कुछ बदलाव है, कुछ गड़बड़ है। शरीर का मुआयना इस बदलाव को सचेत ढंग से पहचानने का एक जरिया है।

त्वचा के कैंसर का पता अपनी जांच कर के लगाया जा सकता है। खूब रौशनी वाली जगह में आइने के सामने अपने पूरे शरीर की त्वचा का मुआयना कीजिए। नाखूनों के नीचे, खोपड़ी, हथेली, पैरों के तलवे जैसी छुपी जगहों का भी।

कहीं कोई नया तिल, मस्सा या रंगीन चकत्ता तो नहीं उभर आया?

कोई पुराना तिल या मस्सा आकार-प्रकार में बड़ा या कड़ा तो नहीं हो गया?

मस्से या तिल का रंग तो नहीं बदला, उससे खून तो नहीं निकलता?

किसी जगह कोई असामान्य गिल्टी या उभार दिखता या महसूस होता है?

त्वचा पर कोई कटन या घाव जो ठीक नहीं हो रहा हो, बल्कि बढ़ रहा हो?


इनमें से किसी भी सवाल का जवाब अगर अपनी जांच के बाद 'हां' में मिलता है तो फौरन डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

तंबाकू खाने की आदतों के कारण मुंह का कैंसर भारतीय पुरुषों में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है। मुंह के भीतर और आसपास का नियमित मुआयना कैंसर की जल्दी पहचान करने में मदद करता है। इस तरह कई बार तो कैंसर होने के पहले की स्टेज पर भी इसे पहचाना जा सकता है। मुंह के कैंसर के लक्षण कैंसर होने के काफी पहले ही दिखने लगते हैं। इसलिए उन्हें पहचान कर अगर जल्द इलाज कराया जाए और तंबाकू सेवन छोड़ने जैसे उपाय किए जाएं तो इससे बचा भी जा सकता है। मुंह के भीतर कहीं भी- मसूढ़ों, जीभ, तालु, होंठ, गाल, गले के पास लाल या सफेद चकत्ते या दाग या छोटी-बड़ी गांठ दिखें तो सचेत हो जाना चाहिए।

मेरी एक मित्र के पिता न सिगरेट शराब पीते थे न तंबाकू उन्होंने कभी चखा। पर कोई 65 की उम्र में अचानक उन्हें मिर्च या नमक तक खाने में मसूढ़ों में जलन महसूस होने लगी। डॉक्टर के पास जांच करवाई तो पता लगा उन्हें मसूढ़ों का कैंसर था। सब हैरान थे कि बिना किसी गलत शौक के भी कैसे उन्हें कैंसर हुआ। फिर पता लगा, वे लंबे समय से नकली दांतों के सेट का इस्तेमाल कर रहे थे, जो जबड़ों पर ठीक से नहीं बैठता था। और वही था जिम्मेदार उनके मुंह में कैंसर पैदा करने के लिए।

मुंह की जांच भी हर दिन करना चाहिए, खास तौर पर तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करने वालों और मुंह में नकली दांत लगाने वालों, दांतों को ठीक करने वाले स्थाई तार आदि लगाने वालों, टेढ़े-मेढ़े दांतों वालों, गाल चबाने की आदत वालों को भी। दरअसल कोई भी बाहरी चीज जब मुंह की नाजुक त्वचा को लगातार चोट पहुंचाती है तो एक सीमा के बाद शरीर उसे झेलने से मना कर देता है। नतीजा होता है उस जगह चमड़ी का मोटा होना, छिल जाना, लाल या सफेद हो जाना आदि। यही बाद में कैंसर बनकर फैल जाता है।

मुंह की जांच करने सा सबसे अच्छा समय है, सुबह ब्रश करके मुंह अच्छी तरह धो लेने के बाद। उस समय मुंह में खाने का कोई बचा हुआ अंश नहीं होगा जो जांच में रुकावट डाले।

अच्छी रौशनी वाली जगह में आइने खड़े हो जाएं जहां पर मुंह खोलने पर उसके भीतरी भाग को आसानी से देख सकते हों।

मुंह के हिस्सों को क्रम से देखते चलें-
1. मुंह बंद रखकर अंगुलियों के सिरों से पकड़ कर होठों को उठाएं और उन पर भरपूर नजर डालें।
2. ओठों को उठा कर पीछे कर दें और दांतों को साथ रख कर मसूढ़ों को सावधानी से देखें।
3. मुंह को पूरा खोल कर जीभ के ऊपरी हिस्से को देखें।
4. तालू यानी मुंह की छत पर और जीभ के नीचे भरपूर नजर डालें।
5. गालों के भीतरी हिस्सों को भी अच्छी रौशनी में ठीक से देखें।

कहीं भी कोई घाव, या चकत्ता नजर आता है? चकत्ता सफेद या लाल भी हो सकता है।

मसूढ़ों से खून तो नहीं निकलता? कोई मसूढ़ा किसी जगह सामान्य मसूढ़ों से ज्यादा मोटा तो नहीं हो गया है?

कोई दांत अचानक तो ढ़ीला होकर गिर नहीं गया?

क्या जीभ उतनी ही बाहर निकाल पाते हैं जितनी पहले, या इसमें कोई अड़चन महसूस होती है?

मुंह के भीतर कहीं भी कोई गांठ या असामान्य बात नजर आती है?


अगर इनमें से एक भी सवाल का जवाब 'हां' में पाते हैं तो फौरन डॉक्टर से जांच करवाएं। इसके अलावा आवाज में बदलाव, लगातार खांसी, निगलने में तकलीफ, गले में खराश को भी नजरअंदाज कतई नहीं करना चाहिए।

Thursday, June 5, 2008

बेआवाज़ शैतान की आहट सुनना सीखें हम

अब मेरे पसंदीदा विषय पर कुछ बात हो जाए। ज्यादा जगह बर्बाद किए बिना मुद्दे पर आते हैं। भारत में स्तन कैंसर के मामले बढ़ने की रफ्तार तेजी पकड़ती जा रही है। अमरीका में हर 9 में से एक महिला को स्तन कैंसर होने की संभावना होती है। इसके मुकाबले भारत में अनुमान है कि हर 22 वीं महिला को अपने जीवनकाल में कभी न कभी स्तन कैंसर होने की संभावना है। इस तरह अगर हर परिवार में न्यूनतम दो महिलाएं हों तो हर ग्यारहवां परिवार स्तन कैंसर को झेलने के लिए तैयार रहे। यह आंकड़ा शहरों में और ज्यादा है। पर इस तथ्य पर भी गौर करना चाहिए कि गांवों में ऐसे कई मामले रिपोर्ट भी नहीं होते।

कुल मिला कर शहरी महिलाओं में स्तन का कैंसर सबसे आम है। कुछ समय पहले तक बच्चेदानी के मुंह यानी सर्वाइकल कैंसर के मामले ज्यादा होते थे, लेकिन अब स्तन कैंसर ने आंकड़ों में इसे पछाड़ दिया है। गांव भी इस आंकड़ा-पलट को करीब आता देख रहे हैं।

आंकड़ों को जाने दें तो भी हमारे यहां स्तन कैंसर का परिदृष्य भयावह है। इसके बारे में जागरूकता की और इसके निदान और इलाज की सिरे से कमी के कारण ज्यादातर मामलों में एक तो मरीज इलाज के लिए सही समय पर सही जगह नहीं पहुंच पाता। दूसरे इसके महंगे और बड़े शहरों तक ही सीमित इलाज के साधनों तक पहुंचना भी हर मरीज के लिए संभव नहीं।

यानी ज्यादातर मरीजों के बारे में सच यह है कि न इलाज इन तक पहुंच पाता है, न ये इलाज तक पहुंच पाते हैं। और जो पहुंच जाता है, उसका कैंसर तब तक बेकाबू हो गया रहता है। और अगर नहीं, तो पैसे की कमी के कारण वह इलाज बीच में ही बंद कर देता है। कई बार तो समय पर सही अस्पताल पहुंच कर पूरा खर्च करने के बाद भी कैंसर ठीक नहीं हो पाता। कारण- हमारे देश में विशेषज्ञता और इलाज की सुविधाओं की कमी।

ऐसे में सवाल यही आता है कि क्या करें कि हालात बेहतर हों। तो, हम समस्या की शुरुआत में ही बहुत कुछ कर सकते हैं। और यही सबसे जरूरी भी है कैंसर को काबू में करने के लिए। कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है- जल्द पहचान। कैंसर की खासियत है कि यह दबे पांव आता है, बिना आहट के, बिना बड़े लक्षणों के। फिर भी कुछ तो सामान्य लगने वाले बदलाव कैंसर के मरीज में होते हैं, जो कैंसर की ओर संकेत करते हैं और अगर वह मरीज सतर्क, जागरूक हो तो वहीं पर मर्ज को दबोच सकता है। वरना थोड़ी छूट मिलते ही यह शैतान बेकाबू होकर बस, कहर ही ढाता है।

अपने स्तन और निप्पल को आइने में देखिए। स्तन को नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन या चारों अंगुलियां मिला कर थोड़ा दबा कर महसूस करके देखिए। अंगुलियों का चलना नियमित गति और दिशाओं में हो।




(यह जांच शावर में या लेट कर भी कर सकते हैं।) कहीं ये बदलाव तो नहीं हैं-

1. स्तन या निप्पल के आकार में कोई असामान्य बदलाव।

2. कहीं कोई गांठ, चाहे वह मूंग की दाल के बराबर ही क्यों न हो। इसमें अक्सर दर्द नहीं रहता है।

3. इस पूरे इलाके में कहीं भी त्वचा में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना या त्वचा में संतरे के छिलके के समान छोटे-छोटे छेद या दाने से बनना।

4. एक स्तन पर खून की नलियां ज्यादा स्पष्ट दिखने लगें।

5. निप्पल भीतर को खिंच गया हो या उसमें से दूध के अलावा कोई भी स्त्राव- सफेद, गुलाबी, लाल, भूरा, पनीला या किसी और रंग का, हो रहा हो।

6. स्तन में कही भी लगातार दर्द हो रहा हो तो भी डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

और ध्यान रहे, ये जांच हर महीने पीरियड के बाद नियम से करनी है। वैसे कई युवा महिलाओं को हर्मोनों में बदलाव की वजह से नियमित रूप से स्तन में सूजन, भारीपन या दर्द जैसे लक्षण होते हैं, जो कि सामान्य बात है। बल्कि स्तन में हुई गांठों में से 90 फीसदी गांठें कैंसर-रहित ही होती हैं। लेकिन इसकी आड़ में 10 फीसदी को अनदेखा तो नहीं किया जा सकता न!

Wednesday, June 4, 2008

कैसे शक करें कि कैंसर हो सकता है?

हमारे पास किसी भी चीज के लिए वक्त कम है, महानगरों में तो बहुत ही कम। लेकिन जीने से ज्यादा हड़बड़ी किसी और काम की हो सकती है क्या? तो अपनी सेहत के लिए अपने पर भी थोड़ा ध्यान दें, नजर रखें अपने शरीर में हो रही छोटी-मोटी तकलीफों और बदलावों पर जो देर होने पर बड़ी मुसीबत भी बन सकते हैं।

कैंसर के शुरुआती लक्षण-
1. भूख कम या न लगना
2. यादाश्त में कमी या सोचने में दिक्कत
3. लगातार खांसी जो ठीक नहीं हो रही हो, और थूक में खून आना
4. पाखाने या पेशाब की आदतों में बिना कारण बदलाव
5. पाखाने या पेशाब में खून जाना
6. बिना कारण खून की कमी
7. स्तन में या शरीर में किसी जगह स्थाई गांठ बनना या सूजन
8. किसी जगह से अकारण खून, पानी या मवाद निकलना
9. आवाज में खरखराहट
10. तिल या मस्से में बदलाव
11. निगलने या खाना हजम करने में परेशानी
12. बिना कारण वजन कम होना या बुखार आना
13. किसी घाव का न भरना
14. सिर में दर्द
15. कमर या पीठ में लगातार दर्द
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