# अब लोग कैंसर के साथ लंबा और बेहतर जीवन जी रहे हैं।
# नई दवाओं और इलाज के तरीकों ने माहौल और लोगों के सोचने का ढंग बदल दिया है।
# अस्पतालों में ऐसे कई कैंसर के मरीज आपको मिल जाएंगे जो पिछले 24-25 साल से तमाम आशंकाओं को नकारते हुए अपना सफर ज़िंदादिली के साथ तय कर रहे हैं। काफी संभव है कि जब मृत्यु आए तो उसकी वजह कैंसर न हो।
# मरीज़ के ठीक होने की अनिवार्यता की जगह उसका जीवन बेहतर बनाने की कोशिश को अहमियत दी जा रही है।
# चिकित्सा समाज में यह बदलाव क्रांतिकारी है।
# मेटास्टैटिक (शरीर के दूसरे हिस्सों में फैले) कैंसर के मरीजों में भी भविष्य को लेकर उम्मीद जाग रही है।
# कैंसर के मरीज़ों के लिए अच्छी तरह जीने का इससे बेहतर वक्त कभी नहीं रहा।
ये कुछ बिंदु मैंने लेख आखिरकार हार रहा है कैंसर में उठाए हैं। यह लेख 8 जुलाई 2008 को नवभारत टाइम्स के संपादकीय पृष्ठ पर मुख्य लेख के रूप में प्रकाशित हुआ है।
आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है।
4 comments:
कैंसर हो जाने वाले लोग अक्सर निराशा से भर जाते हैं, जरूरत है इस निराशा से बाहर निकलने की - यह उनके इलाज़ में सहायता करेगी।
अनुराधा, पहली बार इंद्रधनुष पर गया। आप इतना लिख रही हैं, मालूम नहीं था। बहुत अच्छा लगा। कोशिश करूंगा, लगातार देखता रहूं।
prerak saamagree hai.
Nice blog thanks for postiing
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