Sunday, February 9, 2014

सर्दियों की एक और सुबह


सांस की नली में कुछ अटकने के अहसास के साथ गहरी, दर्द निवारक से ठहराई नींद उचट जाती है। गला दो-तीन बार खांस कर सांस के लिए रास्ता साफ कर सुकून पा लेता है। ऐसा हमेशा सांस की नली के दाहिने हिस्से में होता लगता है, पर डॉक्टर भाई इस अवलोकन पर हंस देता है कि फेफड़ों के ऊपर दाहिना-बायां कुछ नहीं होता।

कड़ी ठंड के अंधेरे कमरे में समय का पता नहीं चलता। गर्दन के नीचे एक खास तरीके से दबी सहारा देती सी दाहिने हाथ की अंगुलियों को वहां से निकालकर धीरे से हिलाती-डुलाती हूं। दूसरे हाथ की अंगुलियां दोनों घुटनों के ठीक ऊपर पैरों के बीच दबी हैं, गर्माहट पाने के लिए। उन्हें भी तत्काल महसूस करने का ख्याल आता है। सुन्न होने के बावजूद वे चल तो रही हैं, हिलती तो हैं। पैरों के पंजे भी रोज कई बार होने वाली इस कवायद से खुश तो होते होंगे। दाहिनी करवट सोई मैं हाथ के नीचे रखे नर्म छोटे तकिए पर हाथ का जोर देकर उठती हूं ताकि रीढ़ पर जोर न पड़े।

प्यास न होने पर भी उठती हूं, दो गिलास उबला पानी पी जाती हूं क्योंकि रात-दिन कुछ नियमतः पीते रहना शरीर की जरूरत बन गया है। तभी पास की सड़क पर एक बस के ब्रेक लगने और रुकने की तेज तीखी बेसुरी किर्र-चूं की दोहरी चीखें गूंजती हैं और मैं समझ जाती हूं कि सुबह का कोई समय हो गया है। 

पानी पीकर, बाकी नींद को पकड़ने की इच्छा से बिस्तर पर लौटते-लौटते दूर कहीं से लाउड स्पीकर से कानों में आती अजान की फूंक साफ बता देती है कि सुबह की पहली नमाज का वक्त है। इसके साथ ही पास के मंदिर का लाउडस्पीकर प्रतियोगी जुगलबंदी में उतर आता है- आरती से। कुछ ही मिनिटों में एक और लाउडस्पीकर पर अजान। आरती-मंत्रोच्चार खत्म होने के पहले एक जगह अजान खत्म हो चुकी होती है। कुछेक मिनट बाद दूसरी अजान भी शांत। सब तरफ सन्नाटा।


खिड़की पर नजर डालती हूं, सुबह की रोशनी को तौलने के लिए। बंद खिड़की के कांच के ऊपरी हिस्से का धूसर उजलापन अहसास कराता है कि पौ फटने को है, जबकि कांच के निचले हिस्से से आती पीली रोशनी साफ-साफ स्ट्रीट लाइट की तेजी को दिखाती है। यानी अंधेरा कायम है। कांच से आने वाली रोशनी की तीव्रता में अंतर शायद ऊपरी हिस्से में जमे कोहरे के कारण है। पक्के तौर पर पता करने के लिए एक बार बाल्कनी की तरफ खुलने वाले दरवाजे के निचले सिरे पर नजर डालती हूं। दरवाजे का बार्डर अब भी काला है। उसमें उजास का कोई चिह्न नहीं बना है अभी।




बंद खिड़की के कांच पर एक कबूतर की चोंच की ठक-ठक- जैसे कोई करीने से दरवाजा खटखटा रहा हो। और फिर पंखों की तेज फड़फड़ाहट, जिसमें एक और कबूतर शामिल हो जाता है।

सुबह की उम्मीद वाले और उठने का समय फिलहाल न होने का ऐलान करते इन्हीं इशारों के आश्वासन के भरोसे धीरे-धीरे आंख लग जाती है। और इस तरह सर्दियों की एक और सुबह की शुरुआत होती है।

17 comments:

prithvi said...

इस तरह की शैली में आपको पहली बार पढ़ा है. सरल, प्रवाहमान..

Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता said...

आपकी पोस्ट सुबह के होने का एक चित्र बना दे रही है मन में

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-02-2014) को "चलो एक काम से तो पीछा छूटा... " (चर्चा मंच-1519) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Anonymous said...

ज़बरदस्त! क्या सुन्दर लिखा है! हालाँकि मुझे अंदाज़ है कि तुम इतना सुन्दर लिख सकती हो और ऐसे ढेर सारे चैप्टर्स लिख सकती हो! :-)
विद्या भूषण

आर. अनुराधा said...

सभी को शुक्रिया।

संजय भास्‍कर said...

ज़बरदस्त!

Anonymous said...

Aapki jeevatata sahi mayne me bemisal hai.Ghanibhoot peeda ke beech aapka sarjnatmak lekhan sardiyon ki subah ke anubhav me ham sabko shaamil to karta hi hai, aapke shabdchtron ki saadgi bhi bayan karta hai aur mujhe 1986-87 ki wo bholi si ladki apne vyaktitva ki samuchi saadgi ke saath yaad aane lagti hai.
Mai samajhta hu ki kudrat ne bepanah dard ko sahne ke liye "Creative Writing" ke roop me ek raahat baksh di hai aapko.
Lakshmi Kant Sharma, Jabalpur

वाणी गीत said...

अलसभोर में जग कर सो जाना , शब्द चित्र में अंकित कर दिया आपने !

वर्षा said...

आपके जाने की खबर सुनकर लंबे वक्त बाद इस ब्लॉग पर आई। श्रद्धांजलि.

वर्षा said...

आपके जाने की खबर सुनकर लंबे वक्त बाद इस ब्लॉग पर आई। श्रद्धांजलि.

Unknown said...

Our urgent care center, patients can be seen and treated, often in less than an hour, for injuries like minor lacerations, sprains, simple fractures, animal bites, sports injuries and other discomforts like sore throats, earaches, asthma attacks, migraines, urinary tract infections or the flu. Our urgent care facility is open seven days a week, 365 days a year including all holidays with convenient daytime and evening hours for patients seeking immediate treatment for minor illnesses and injuries as well as a wide variety of diagnostic and screening services including basic lab and x-rays.

urgent care open 24 hours

Roopkala said...

शब्दों का चयन आपकी लेखनी की पैनी धार से रूबरू करवाता है ।

Roopkala said...

आप हमेशा कर्तव्य निर्वहन में अग्रिम पंक्ति में होते है । नमन !

Kabir Ke Dohe said...

ज़बरदस्त! क्या सुन्दर लिखा है

Last Leader said...

ek behtreen lekh

Narender Singh said...

अति उत्तम रचना

lovesov said...

HEART TOUCHING POST

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