Saturday, April 18, 2009

कैंसर पर जानकारी टुकड़ों में (भाग-3)

कैंसर पर जानकारी टुकड़ों में (भाग-2)

कैंसर पर जानकारी टुकड़ों में (भाग-1)


फ्री-रैडिकल्स और ऐंटी-ऑक्सीडेंट

ऑक्सीडेशन एक रासायनिक प्रक्रिया है जिससे लोहे में जंग लगती है और हमारे शरीर में भी। हमारे शरीर में मौजूद फ्री-रैडिकल्स ऐसे अणु हैं जिनमें एक इलेक्ट्रॉन कम होता है जिसकी पूर्ति के लिए वे दूसरे अणुओं की ओर जल्द आकर्षित होते हैं और उनके इलेक्ट्रॉन चुरा लेते हैं। अब जिस अणु का इलेक्ट्रॉन चोरी हुआ है वह किसी और का चुराने को उद्धत रहता है इस तरह यह चेन रिऐक्शन चलता रहता है जिससे कोशिका के भीतर कई तरह के अणु, यहां तक कि डीएनए भी प्रभावित होते है।

डीएनए का एक अणु भी अपनी जगह से हिला तो उसके जेनेटिक कोड में बदलाव आ जाता है और कोशिका का काम-काज प्रभावित होता है। तंबाकू, धुंए, रेडिएशन जैसी कई चीजों में फ्री-रैडिकल्स होते हैं जो कोशिका के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर भी पैदा कर सकते हैं।

फ्री-रैडिकल्स के लिए इलेक्ट्रॉन देने में शरीर में मौजूद ऑक्सीजन अव्वल होती है। इसलिए फ्री-रैडिकल्स को इलेक्ट्रॉन की पूर्ति होना ऑक्सिडेशन कहलाता है। जो अणु फ्री-रैडिकल्स के ऑक्सिडेशन को रोकते हैं उन्हें ऐंटी-ऑक्सीडेंट कहा जाता है।

ऐंटी-ऑक्सीडेंट, जैसे विटामिन ई और सी, फ्री रैडिकल्स के साथ रिऐक्शन करके उन्हें काबू में रखते हैं और इस तरह ऑक्सीडेशन की चेन रिऐक्शन को, यानी कैंसर पैदा होने की स्थितियों को रोकते हैं। पेड़-पौधों में ऐंटी-ऑक्सीडेंट काफी होते हैं। ये हमारे शरीर में भी पैदा होते हैं लेकिन काफी कम मात्रा में।

फाइटोकेमिकल्स यानी पौधों से मिलने वाले रसायन जो कैंसर को रोकते हैं, उसकी ग्रोथ को रोकते हैं या उसे ठीक करने में मदद करते हैं। अब तक कोई ऐसा फाइटोकेमिकल नहीं खोजा जा सका है जिससे कैंसर का इलाज हो जाए। हालांकि कैंसर को रोकने में कई फाइटोकेमिकल्स कामयाब पाए गए है।

ऐंथोसायनिन ऐसे रसायन हैं जो सब्जियों, साइट्रस फलों, बेरीज़ आदि को लाल, नीला और जामुनी रंग देते हैं। इनसे बढ़ी उम्र से जुड़ी तकलीफें, दिल की बीमारियां, मोटापे और कैंसर रोकने में मदद करते हैं। ये ऐंटी-ऑक्सीडेंट का काम करके डीएनए को नुकसान से बचाते हैं।

करक्यूमिन हल्दी को पीला रंग देने वाला रसायन है। यह ऐटी-ऑक्सीडेंट के साथ ही कीटीणु-नाशक, विष-नाशक भी है। यह स्वस्थ कोशाओं को छेड़े बिना ट्यूमर की बीमार कोशिकाओं के विकास को धीमा कर देता है।

ईजीसीजी या एपीगैलोकैचिन-3-गैलेट हरी चाय में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो त्वचा, कोलोन, स्तन, पेट, लिवर और पेफड़ों के कैंसर को रोकने में मदद करता है। पानी के बाद सबसे ज्यादा पिया जाने वाला पेय- चाय की पत्ती को जब फर्मेंट या प्रोसेस नहीं किया जाता तो उसके ज्यादातर गुण रह जाते हैं।

लाइकोपीन टमाटरों को लाल रंग देने वाला रसायन है। यह तरबूज़, अंगूर, अमरूद र पपीते में भी थोड़ी-बहुत मात्रा में मिलता है। इसका सेवन करने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा कम हो जाता है। साबित हो चुका है कि ताजे टमाटरों से मिलने वाला लाइकोपीन ज्यादा असरदार होता है, बजाए लाइकोपीन की गोलियों के।

ईस्ट्रोजन हार्मोंन जो मानव शरीर में अपने आप बनता है। इसके समान हार्मोन पौधों में भी होता है- फाइटोईस्ट्रोजन। सोया उत्पादों में यह बड़ी मात्रा में होता है। ईस्ट्रोजन हार्मोंन स्तन, बच्चेदानी की झिल्ली और प्रोस्टेट कैंसर का कारण है। जबकि फाइटोईस्ट्रोजन की मौजूदगी ईस्ट्रोजन के बुरे प्रभाव को कम कर देती है।

पिक्नोजेलोन फ्रांस में पाए जाने वाले चीड़ के पेड़ की छाल से मिलने वाला रसायन है। यह अंगूर और कोकोआ में भी पाया जाता है। इसके ऐंटी-ऑक्सीडेंट प्रभाव की पड़ताल जारी है।

4 comments:

नीरज गोस्वामी said...

कमाल की जानकारी....आपकी जितनी तारीफ की जाये कम है...
नीरज

वर्षा said...

उपयोगी जानकारी कहूंगी

Shri Sitaram Rasoi said...

आपका यह लेख अच्छा है।

Shri Sitaram Rasoi said...

इसे जरूर पढ़ें। http://flaxindia.blogspot.in/2011/12/budwig-cancer-treatment.html
डॉ. ओ पी वर्मा

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