इंटरनेट पर कैंसर के बारे में ढेरों जानकारी बिखरी पड़ी है। इनका सार आपके सामने रखने की कोशिश में यह सीरीज शुरू कर रही हूं। यह मेरे नव भारत टाइम्स में 6 अप्रैल को जस्ट-जिंदगी पेज पर छपे लेख पर आधारित है।
कैसे होता है कैंसर
हमारे शरीर की सबसे छोटी यूनिट (इकाई) सेल (कोशिका) है। शरीर में 100 से 1000 खरब सेल्स होते हैं। हर पल ढेरों नए सेल बनते रहते हैं और पुराने व खराब सेल खत्म होते जाते हैं। शरीर के किसी भी नॉर्मल टिश्यू में जितने नए सेल्स पैदा होते हैं, उतने ही पुराने सेल्स खत्म हो जाते हैं। इस तरह टिश्यू में संतुलन बना रहता है। कैंसर के मरीजों में यह संतुलन बिगड़ जाता है और उनमें सेल्स की बेलगाम बढ़ोतरी होती रहती है।
गलत लाइफस्टाइल और तंबाकू-शराब जैसी चीजें किसी सेल के जेनेटिक कोड में बदलाव लाकर कैंसर पैदा कर देती हैं। आमतौर पर जब किसी सेल में किसी वजह से खराबी आ जाती है तो खराब सेल अपने जैसे खराब सेल्स पैदा नहीं करता। वह खुद को मार देता है। कैंसर सेल खराब होने के बावजूद खुद को नहीं मारता, बल्कि अपने जैसे सेल बेतरतीब तरीके से पैदा करता जाता है जो सही सेल्स के कामकाज में रुकावट डालने लगते हैं।
कैंसर सेल एक जगह टिककर नहीं रहते। अपने मूल अंग से निकलकर शरीर में किसी दूसरी जगह जमकर वहां भी अपने तरह के बीमार सेल्स का ढेर बना डालते हैं। इससे उस अंग के कामकाज में भी रुकावट आने लगती है। इन अधूरे बीमार सेल्स का समूह ही कैंसर है। ट्यूमर बनने में महीनों, बरसों, बल्कि कई बार तो दशकों लग जाते हैं। कम-से-कम एक अरब सेल्स के जमा होने पर ही ट्यूमर पहचानने लायक हालत में आता है।
बिनाइन ट्यूमर और कैंसर में फर्क
ट्यूमर को गांठ या गिल्टी भी कहते हैं। यह कैंसर-रहित (नॉन मेलिग्नेंट या बिाइन) भी हो सकती है और कैंसर वाली (मेलिग्नेंट) भी। यानी हर ट्यूमर कैंसर ही हो, जरूरी नहीं। कई बार पुराना कैंसर-रहित ट्यूमर भी बाद में जाकर कैंसर बन सकता है। इसलिए यदि शरीर में कहीं गांठ या गिल्टी हो, तो समय-समय पर उसकी जांच करवाना सेफ रहता है। इसके लिए बायोप्सी कराई जाती है।
3 comments:
कैंसर के बारे में ज्ञानवर्द्धक जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
बहुत सुन्दर प्रयास है आपका। हार्दिक बधाई।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
Hi Anuradha.
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With warm Regards
Rajesh
raj007iimc@yahoo.co.in
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