रजिया मिर्जा इस ब्लॉग की नई पाठक और कॉन्ट्रीब्यूटर हैं। उन्होंने यह कविता भेजी तो मैं एक मिनट भी रुक नहीं पाई उसे ब्लॉग पर लगाने से। उनकी स्थिति को हम सब समझते हैं और उम्मीद और दुआ करते हैं कि मां जल्द ही इलाज पूरा करके, उसकी तकलीफों से उबर कर फिर स्वस्थ हो जाएंगी।
मेरा घर, हमारा घर, हम सब का घर।
बडी, मंझली, छोटी और मुन्ने का घर ।
जहाँ हम पले, जहाँ हमने अपनी पहली सांस ली।
जिसमें हमारा वजूद बना।
जिस से हमारे ताने-बाने जुडे हुए थे,
वो हमारा घर।
पर आज….हमारे उसी घर को,
घेर रख़ा है दीमक ने।
दीमक ने अपना जाल खूब फैला रख़ा है,
हमारे उसी घर पर।
लोग कहते हैं “निकाल दो इस दीमक को”।
पर कैसे? कैसे निकाल सकते हैं हम इसे?
इस से जो हमारी “मा” जुडी है।
उसका इस घर से पचत्तर साल का नाता है।
और फिर वो कमजोर भी तो है।
उस बेचारी को तो पता भी नहीं कि..
दीमक ने घेर रख़ा है उसके घर को।
पर हाँ…!इलाज जारी है, दीमक के फैलते हुए जाल को
रोकने का…।
“ कीमोथेरेपी और रेडिएशन ” के ज़रीए।
ताकि बच जाए हमारी “माँ”
9 comments:
मार्मिक कविता है।
घुघूती बासूती
सम्वेदनाओं से भरपूर रचना। कहते हैं कि-
बादलों के दर्मियां न जाने क्या साजिश हुई।
मेरा घर मिट्टी का था मेरे घर बारिश हुई।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
i hv no words to put in a comment
nishabdh hun
दिल को छू लेने वाली मार्मिक कविता है यह ..सब अच्छा हो यही दुआ है
दिल की बातों को शब्द मिल गए हैं
इसे ही प्यार कहते हैं।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
behatareen.... umda likha hai ....
behatareen.... umda likha hai ....
na jane kis tarhan to raat bhar chappar banate hain,savere hi savere aandhiyan phir laut aati hain.navbharattimes,ke marfat is blog tak,,phir kavita tak pahuncha,meri to lautary hi nikal iei,itani sashakt abhivyakti lokpriyavigyan main pahle nahin dekhi padhi,badhai ranuradhaji(anuradha bahin).
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