Thursday, August 1, 2013

कह दिया जो मन में था, भला-बुरा आप जानिए (2)




  • -      ईस्ट्रोजन तो खत्म हो गया। पहले रसायनों से दबाया गया, फिर ओवरीज़ निकाल कर, बकिया दवा से और दबा दिया गया। ज़िंदादिली कहां से आए। जिंदा शरीर और जिंदा दिल के बीच चुनना था। चुनाव कठिन नहीं था। धारा के साथ बह रही हूं। देह को बचाने में डॉक्टरों का साथ दे रही हूं। दिल का क्या है! शरीर रहेगा तो दिल भी थोड़ा-बहुत तो जी लेगा। वरना तो फिर कुछ नहीं है।
  • -      गुस्सा आता है कि दूसरे सहजता से पाते हैं, बिना परवाह किए, बिना जाने। ज़ाहिर है, पाने का शुक्राना भी नहीं देते। और देखती हूं, मेरे पास वह कुछ भी नहीं है जो मेरी उम्र में जीवन का प्राप्य होना था। क्यों का कोई जवाब नहीं है। आधारभूत बात यही है कि मेरे पास से वह सब चला गया, असमय, समय से बहुत पहले। और रह गई यह भावना कि क्यों नहीं खो जाने के पहले ही मैं भरपूर जी ली उन समयों को, रीति-नीति को ताक पर रख कर।
  • -      हार्मोन और दवा की लड़ाई में दवा जीतती है तो मैं बचती हूं। पर हार्मोन जीते तो मेरा दिल बचेगा। क्या करूं? दवा की जीत का समर्थन ही मेरे जीने का उद्देश्य रह गया है। दिल गया भाड़ में।
  • -      शायद कुछ चोरी हो गया है। भविष्य का एक हिस्सा, नीले आकाश का एक टुकड़ा जो पूरा मेरा हो सकता था।
  • -      मरने के पहले अपने जीवन का दुख मना ही लेना होगा। उन सबका जो धीरे-धीरे खोया जा रहा है, छूटता जा रहा है। आत्मविश्वास, मुस्कुराहटें, हंसी के हलके पल, बातों को हलके में लेने का जज़्बा...
  • -      कई बार लगने लगता है कि कैंसर से मेरी दोस्ती हो गई है, समझौता–सा हो गया, शांति स्थापित हो गई। और तभी एक जोरदार वार, सीधे पेट पर।
  • -      बीमार, थके हुए। उम्मीदों का खाली झोला लिए अस्पताल चले हैं डॉक्टरों से सौदा करने। झोले में कुछ प्रिस्क्रिप्शन, कुछ दवाएं, कुछ रिपोर्ट, रेडीमेड जूस का खाली डब्बा और किसी कोने में मुड़ा-तुड़ा अनदेखा-सा पड़ा एक खाली पुर्जा आशा का लिए लौट आते हैं।
  • -      अब तय करना होगा। चाहे जितनी भी छोटी या बड़ी हो, अधूरी हो, इसी से काम चलाना है। जिंदगी को काम पर लगाना है। बेरोजगार ज्यादा गुस्सा करता है, ज्यादा दुखी होता है, ज्यादा तकलीफ महसूस करता है। चलो काम पर लगें।
  • -      काम यानी पढ़ना, पियानो बजाना, किसी के लिए लिखना, सिलना-बुनना, फेसबुक पर सलाह-मशविरे लेना-देना, अस्पताल में मरीजों के साथ अनुभव बांटना, चित्र खींचना, कुछ लिखना जिसे पढ़कर लोग जानें कि क्या है यह ज़िंदगी, क्या करता है कोई इसका और यह क्या कर सकती है किसी का।

2 comments:

dipti said...

anubhav ko likh pana, swikaarna bahut himmat ka kaam hai. aap himmati aur prernadai hai.

Raindrop said...

न जाने क्यों नहीं पढ़ा मैंने इतने दिनों तक इस ब्लॉग को. एक एक पंक्ति पढ़ कर ऐसा लग रहा है हम आमने सामने बैठे हैं और बात कर रहे हैं। आसां नहीं है जो उसे बयाँ कर रही हैं आप. ताकि कोई और जो इस स्तिथि में है वो इस से कुछ दिलासा पा सके और प्रेरित हो अपने अन्दर हो रहे द्वन्द से सामना करने के लिये.

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