अब मेरे पसंदीदा विषय पर कुछ बात हो जाए। ज्यादा जगह बर्बाद किए बिना मुद्दे पर आते हैं। भारत में स्तन कैंसर के मामले बढ़ने की रफ्तार तेजी पकड़ती जा रही है। अमरीका में हर 9 में से एक महिला को स्तन कैंसर होने की संभावना होती है। इसके मुकाबले भारत में अनुमान है कि हर 22 वीं महिला को अपने जीवनकाल में कभी न कभी स्तन कैंसर होने की संभावना है। इस तरह अगर हर परिवार में न्यूनतम दो महिलाएं हों तो हर ग्यारहवां परिवार स्तन कैंसर को झेलने के लिए तैयार रहे। यह आंकड़ा शहरों में और ज्यादा है। पर इस तथ्य पर भी गौर करना चाहिए कि गांवों में ऐसे कई मामले रिपोर्ट भी नहीं होते।
कुल मिला कर शहरी महिलाओं में स्तन का कैंसर सबसे आम है। कुछ समय पहले तक बच्चेदानी के मुंह यानी सर्वाइकल कैंसर के मामले ज्यादा होते थे, लेकिन अब स्तन कैंसर ने आंकड़ों में इसे पछाड़ दिया है। गांव भी इस आंकड़ा-पलट को करीब आता देख रहे हैं।
आंकड़ों को जाने दें तो भी हमारे यहां स्तन कैंसर का परिदृष्य भयावह है। इसके बारे में जागरूकता की और इसके निदान और इलाज की सिरे से कमी के कारण ज्यादातर मामलों में एक तो मरीज इलाज के लिए सही समय पर सही जगह नहीं पहुंच पाता। दूसरे इसके महंगे और बड़े शहरों तक ही सीमित इलाज के साधनों तक पहुंचना भी हर मरीज के लिए संभव नहीं।
यानी ज्यादातर मरीजों के बारे में सच यह है कि न इलाज इन तक पहुंच पाता है, न ये इलाज तक पहुंच पाते हैं। और जो पहुंच जाता है, उसका कैंसर तब तक बेकाबू हो गया रहता है। और अगर नहीं, तो पैसे की कमी के कारण वह इलाज बीच में ही बंद कर देता है। कई बार तो समय पर सही अस्पताल पहुंच कर पूरा खर्च करने के बाद भी कैंसर ठीक नहीं हो पाता। कारण- हमारे देश में विशेषज्ञता और इलाज की सुविधाओं की कमी।
ऐसे में सवाल यही आता है कि क्या करें कि हालात बेहतर हों। तो, हम समस्या की शुरुआत में ही बहुत कुछ कर सकते हैं। और यही सबसे जरूरी भी है कैंसर को काबू में करने के लिए। कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है- जल्द पहचान। कैंसर की खासियत है कि यह दबे पांव आता है, बिना आहट के, बिना बड़े लक्षणों के। फिर भी कुछ तो सामान्य लगने वाले बदलाव कैंसर के मरीज में होते हैं, जो कैंसर की ओर संकेत करते हैं और अगर वह मरीज सतर्क, जागरूक हो तो वहीं पर मर्ज को दबोच सकता है। वरना थोड़ी छूट मिलते ही यह शैतान बेकाबू होकर बस, कहर ही ढाता है।
अपने स्तन और निप्पल को आइने में देखिए। स्तन को नीचे ब्रालाइन से ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन या चारों अंगुलियां मिला कर थोड़ा दबा कर महसूस करके देखिए। अंगुलियों का चलना नियमित गति और दिशाओं में हो।
(यह जांच शावर में या लेट कर भी कर सकते हैं।) कहीं ये बदलाव तो नहीं हैं-
1. स्तन या निप्पल के आकार में कोई असामान्य बदलाव।
2. कहीं कोई गांठ, चाहे वह मूंग की दाल के बराबर ही क्यों न हो। इसमें अक्सर दर्द नहीं रहता है।
3. इस पूरे इलाके में कहीं भी त्वचा में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना या त्वचा में संतरे के छिलके के समान छोटे-छोटे छेद या दाने से बनना।
4. एक स्तन पर खून की नलियां ज्यादा स्पष्ट दिखने लगें।
5. निप्पल भीतर को खिंच गया हो या उसमें से दूध के अलावा कोई भी स्त्राव- सफेद, गुलाबी, लाल, भूरा, पनीला या किसी और रंग का, हो रहा हो।
6. स्तन में कही भी लगातार दर्द हो रहा हो तो भी डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
और ध्यान रहे, ये जांच हर महीने पीरियड के बाद नियम से करनी है। वैसे कई युवा महिलाओं को हर्मोनों में बदलाव की वजह से नियमित रूप से स्तन में सूजन, भारीपन या दर्द जैसे लक्षण होते हैं, जो कि सामान्य बात है। बल्कि स्तन में हुई गांठों में से 90 फीसदी गांठें कैंसर-रहित ही होती हैं। लेकिन इसकी आड़ में 10 फीसदी को अनदेखा तो नहीं किया जा सकता न!
2 comments:
इस बारे में जानकारी पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए। हम अपने शरीर के बारे में अक्सर काफी कम जानते हैं।
दिलीप जी एकदम सही फ़रमाते हैं, जानकारी होगी तो महिलायें सावधान रह सकेंगी पुरुष भी उनकी देखभाल व स्वास्थ सम्बन्धी अपने कर्तव्य का पालन कर पायेंगे.
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