Monday, June 24, 2013

स्तन कैंसर पर मेरी कुछ कविताएं

बड़े दिनों के बाद ख्याल आया। एक ब्लॉग है, जानकीपुल, जो साहित्य चर्चाओं पर केंद्रित है। उस पर मेरी कुछ कविताएं इस साल फरवरी में प्रकाशित हुईं।

मित्र प्रियदर्शन के बार-बार कहने पर आखिर एक तरह से संकोच और निर्लिप्त भाव से अपनी तब तक टाइप कर पाई कुछ कविताएं उन्हें भेजीं। उनमें से कुछ चुनकर ब्लॉग पर लगाई गईं। प्रियदर्शन ने एक परिचय भी लिखा जो मुझे लगा, एकदम सटीक था।

कविताएं भेजते समय, यहां तक कि उनके प्रकाशित होने तक भी मैं कतई उत्साहित नहीं थी। लेकिन उस पर जैसी और जितनी प्रतिक्रियाएं आईं, जितने (शायद तब तक का रिकॉर्ड) लोगों ने उसे 'लाइक' किया, मुझे लगा कि लोग यह सब पढ़ना चाहते हैं। मेरा उत्साह बढ़ा, लेकिन उसके बाद मित्र प्रियदर्शन के कई तरह के सुझावों के बाद भी अपनी कविताओं का कुछ नहीं किया।

फिलहाल, जानकीपुल के उस लिंक के साथ ही एर कविता यहां लगा रही हूं।
http://www.jankipul.com/2013/02/blog-post_2.html

अधूरा
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सुनती हूं बहुत कुछ
जो लोग कहते हैं
असंबोधित
कि
अधूरी हूं मैं- एक बार
अधूरी हूं मैं- दूसरी बार
क्या दो अधूरे मिलकर
एक पूरा नहीं होते?
होते ही हैं
चाहे रोटी हो या
मेरा समतल सीना
और अधूरा आखिर
होता क्या है!
जैसे अधूरा चांद? आसमान? पेड़? धरती?
कैसे हो सकता है
कोई इंसान अधूरा!

जैसे कि
केकड़ों की थैलियों से भरा
मेरा बायां स्तन
और कोई सात बरस बाद
दाहिना भी
अगर हट जाए,
कट जाए
मेरे शरीर का कोई हिस्सा
किसी दुर्घटना में
व्याधि में/ उससे निजात पाने में
एक हिस्सा गया तो जाए
बाकी तो बचा रहा!
बाकी शरीर/मन चलता तो है
अपनी पुरानी रफ्तार!
अधूरी हैं वो कोठरियां
शरीर/स्तन के भीतर
जहां पल रहे हों वो केकड़े
अपनी ही थाली में छेद करते हुए।

कोई इंसान हो सकता है भला अधूरा?
जब तक कोई जिंदा है, पूरा है
जान कभी आधी हो सकती है भला!
अधूरा कौन है-
वह, जिसके कंधे ऊंचे हैं
या जिसकी लंबाई नीची
जिसे भरी दोपहरी में अपना ऊनी टोप चाहिए
या जिसे सोने के लिए अपना तकिया
वह, जिसका पेट आगे
या वह,जिसकी पीठ
जो सूरज को बर्दाश्त नहीं कर सकता
या जिसे अंधेरे में परेशानी है
जिसे सुनने की परेशानी है
या जिसे देखने-बोलने की
जो हाजमे से परेशान है या जो भूख से?
आखिर कौन?
मेरी परिभाषा में-
जो टूटने-कटने पर बनाया नहीं जा सकता
जिसे जिलाया नहीं जा सकता
वह अधूरा नहीं हो सकता
अधूरा वह
जो बन रहा है
बन कर पूरा नहीं हुआ जो
जिसे पूरा होना है
देर-सबेर।
कुछ और नहीं।
न इंसान
न कुत्ता
न गाय-बैल
न चींटी
न अमलतास
न धरती
न आसमान
न चांद
न विचार
न कल्पना
न सपने
न कोशिश
न जिजीविषा
कुछ भी नहीं।
पूंछ कटा कुत्ता
बिना सींग के गाय-बैल
पांच टांगों वाली चींटी
छंटा हुआ अमलतास
बंजर धरती
क्षितिज पर रुका आसमान
ग्रहण में ढंका चांद
कोई अधूरा नहीं अगर
तो फिर कैसे
किसी स्त्री के स्तन का न होना
अधूरापन है
सूनापन है?

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