Tuesday, July 19, 2011

शराब के नतीजों की जिम्मेदारी लेने की कोई उम्र नहीं हो सकती

पिछले दिनों महाराष्ट्र में 25 साल से कम उम्र के युवाओं को शराब पीने की मनाही कर दी है। इससे पहले पाबंदी 21 साल से कम उम्र के किशोरों पर ही लागू की थी। अब 21 साल के युवाओं को सिर्फ बियर और वाइन खरीदने और पीने की इजाजत है। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि कम उम्र में नशे की तरफ रुझान और मित्र-वर्ग का दबाव भी ज्यादा होता है। इसलिए कम उम्र में ही शराब की लत पर रोक लगाने की कोशिश में यह नियम बनाया गया है। शराब पर आबकारी कर से राज्य सरकारों को खासी आमदनी होती है। यह नुकसान झेलकर भी महाराष्ट्र में यह पाबंदी लगाई गई है। मणिपुर, मिजोरम और गुजरात में पूरी तरह शराबबंदी लागू है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे कई और राज्यों में भी समय-समय पर थोड़ी-पूरी शराबबंदी लागू रही है।

देश में 30 फीसदी तक अल्कोहल की खपत 25 साल से कम उम्र के युवाओं में ही होती है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में शराब की औसत खपत 10 लीटर प्रति माह है। इनमें हार्ड लिकर की खपत सबसे ज्यादा है। बीयर जैसे हल्के अल्कोहल की कुल खपत एक फीसदी से भी कम है। मजदूरों, कामगारों, खेतिहर किसानों में अल्कोहल की खपत सबसे ज्यादा है। और शराब की लत से इन्हें दूर रखने की ही सबसे ज्यादा जरूरत है।

शराब पीने के लिए उम्र की सीमा 25 साल कर दिए जाने का घोर विरोध हुआ है। अमिताभ बच्चन और कई दूसरे फिल्मी सितारों ने फेसबुक-ट्विटर पर ऐलानिया विरोध किया और उम्र बढ़ाने के इस नए नियम के खिलाफ मुहिम सी छेड़ दी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इट्स माई लाइफ नाम से एक कैंपेन चला दिया । इसका कोई ठोस नतीजा तो नहीं निकला, लेकिन ये साफ हो गया कि युवा इससे खुश नहीं हैं। उनका तर्क है कि जब वे 25 की उम्र के पहले वोट डालने, अपना प्रतिनिधि चुनने, वाहन चलाने, शादी करने यहां तक कि सेना में भर्ती होने और देश के लिए लड़ाई पर जाने लायक जिम्मेदार और समझदार मान लिए गए हैं तो फिर उनकी शराब पीने की जिम्मेदारी और समझदारी पर शक क्यों?

सोचने की बात यह है कि अल्कोहल शरीर पर बुरा असर डालता ही है, तो उसके उपभोग में समझदारी कैसी। और जब शरीर और सेहत पर तत्काल और लंबे समय में होने वाले उसके असर पर अपना जरा सा बस भी नहीं है तो उसकी जिम्मेदारी कैसे ले कोई?

अल्कोलह पीने के इसके समर्थन में वे योरोप-अमरीका का उदाहरण भी देते हैं। लेकिन वहां भी अल्कोहल को लेकर कई तरह की और कड़ी पाबंदियां हैं, सिर्फ दिखावे के नियम वहां नहीं। ज्यादातर देशों में उपभोग के लिए कम से कम 18 साल और कुछेक देशों में अल्कोहल खरीदने के लिए 20-24 साल तक की उम्र की न्यूनतम सीमा है। इसके बरअक्स एक और स्थिति को रखें तो 18 की उम्र में शराब पीने की छूट चाहने वाले किशोर उन विदेशी किशोरों की तरह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होते हैं। यानी वे अपनी जिम्मेदारी खुद नहीं उठा सकते हैं। इसके साथ इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि कई देशों में अल्कोहल पिए जाने की मात्रा पर पाबंदी है। आयरलैंड में पुरुष सप्ताह में 14 पिंट से अधिक शराब नहीं पी सकते तो अमरीका में महिलाओं का हफ्ते का कोटा अधिकतम 7 पिंट अल्कोहल तक का है। भारत में ऐसी कोई रोक नहीं है।

इस स्तर पर तो ये एक लंबी बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन कनाडा की मेडिकल एसोसिएशन जर्नल की चिंता यह है कि ये सारी पाबंदियां कैंसर को रोकने के लिए कतई नाकाफी हैं। डॉक्टर साफ कहते हैं कि ऐसी कोई सुरक्षित सीमा नहीं है, जिससे कम अल्कोहल नुकसानरहित हो। हाल ही में कई ऐसी रपटों से पता चला है कि रोजाना एक पेग अल्कोहल भी मुंह, गले, ईसोफेगस, लिवर, कोलोन, रेक्टम, स्तन के कैंसर को जगाने के लिए काफी है। पत्रिका में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के मुताबिक यूरोप में पुरुषों के 10 फीसदी और महिलाओं के 3 फीसदी कैंसरों का कारण मात्र अल्कोहल का सेवन है।

हालांकि कुछ रिपोर्टों में बताया गया है कि रेड वाइन की चुस्कियों से दिल के मर्ज दूर रहते हैं, पर यह भी एक भ्रम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी लगातार कहता है कि जितना कम हो उतना ही बेहतर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि दिल की बीमारियों सहित नौ बीमारियां हैं जिनका एकमात्र कारण शराबखोरी हो सकती है। इनके अलावा सैकड़ों तकलीफें हैं, जिनको बढ़ाने में शराब मदद करती है। इस अध्ययन में कैंसर पर गहराई से आंकड़े जुटाए गए हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि किसी भी देश में बीमार होना व्यक्ति की सिर्फ अपनी नहीं बल्कि पूरे देश की चिंता है, क्योंकि सब मिलाकर देश की कुल स्वास्थ्य व्यवस्था और इतनी बड़ी आबादी के लिए उपलब्ध सीमित संसाधनों पर बोझ पड़ता है। खर्च व्यक्ति का अकेले का नहीं, पर पूरे देश के साझा संसाधनों का होता है। इसमें एक व्यक्ति के डॉक्टरी पढ़ने के सरकार के खर्च से लेकर दवा या उपकरणों पर सब्सिडी या सीमित संख्या में उपलब्ध अस्पताल के बेड को पा लेने तक बहुत से खर्च और संसाधन शामिल हैं।

कनाडा में पुरुषों के लिए हफ्ते में 14 ड्रिंक और महिलाओं के लिए 9 ड्रिंक की सीमा को सेहत के लिहाज से कम रिस्क वाला बताया गया है। ध्यान रहे कि इसे “लो रिस्क” कहा गया है, “नो रिस्क” नहीं।

आप शराब पीने के लिए बिना कारण कितना रिस्क लेने को तैयार हैं? औऱ उसकी जिम्मेदारी...?

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मत पियो रे शराब!
पागल कर देती है!!

Vijaya Singh said...

thanx mam for such a nice post. With due respect mam, i want 2 share it by my blog and fb account. Hope u r with me.
Regards,
VIJAYA

आर. अनुराधा said...

Yes Vijaya, whatever I post is for one and all to read. You can use it as and when you wish to. The only request is, please let me know where you are posting/printing it with attribution and send me the link/a hard or soft copy.
Thanks. Where should I see the link for this write-up? what is ur blog?

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