Sunday, September 13, 2009

'सेल फोन से ब्रेन ट्यूमर होता है?- गलत'

हम सभी को एक-न-एक बार वह फॉरवर्डेड मेल मिली होगी जिसमें कहा जाता है कि ज्यादा सेलफोन इस्तेमाल करने वालों को सिर का ट्यूमर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए सेलफोन को सिर के पास न यानी कान पर रखें बल्कि ब्लू-टूथ उपकरणों का इस्तेमाल करें।

सेलफोन से ट्यूमर होने की बात सबसे पहले चर्चा में आई जब डेविड रेनार्ड ने 1993 में एक टीवी शो में अपनी पत्नी को ब्रेन ट्यूमर होने का कारण यह माना कि वह सिर से सेलफोन लगाकर काफी देर तक बातें करती थी। इसके समर्थन में कई न्यूरोसर्जन्स भी कह चुके हैं हालांकि वे भी इसका कोई पुख्ता कारण नहीं दे पाए कि यह कैसे होता है।

इसका जवाब मेडीकल साइंस के नहीं, भौतिकी के विशेषज्ञों से आया है। कोलैबोरेशन ऑफ इंटरनैशनल ईएमएफ एक्टिविस्ट्स नाम के इस ग्रुप ने सेलफोन से ब्रेन ट्यूमर होने की संभावना पर एक रपोर्ट जारी की है।

दरअसल कैंसर शरीर में होता है जब कोशिकीय डीएनए में गडबड़ होती है और उसमें म्यूटेशन आ जाता है, यानी उसकी संरचना में बदलाव आ जाता है। रसायनों, रेडएशन या वायरस से होने वाले ट्यूमर सभी में कोशिका में यह बदलाव आता है। सभी प्रकार के रेडएशन में फोटोन होते हैं और रेडिएशन की वेवलेंथ से उस फोटोन की ताकत तय होती है।

भौतिकशास्त्री एक आधारभूत तथ्य देते हैं कि साधारण बल्ब की रौशनी की फ्रीक्वेंसी 5x1014 हर्ट्ज़ होती है जिसमें हमारी कोशिका के डीएनए को तोड़ने या छेड़ने की ताकत नहीं होती, वरना आज हम सब या तो कैंसरों का पुलिंदा बने घूम रहे होते या अंधेरे में जी रहे होते।

इसके मुकाबले सेलफोन की फ्रीक्वेंसी 1 x 109 हर्ट्ज़ होती है और घरेलू इस्तेमाल के माइक्रोवेव ओवन की 2.45 x 1012 हर्ट्ज़। यानी बल्ब के मुकाबले माइक्रोवेव में ऊर्जा एक हजारवां और सेलफोन में दस लाखवां हिस्सा होती है। यानी सेलफोन की ऊर्जा से जीवित शरीर के भीतर किसी कोशिका के डीएनए को तोड़ना वैसा ही है जैसे कागज़ की कैंची से लोहे का तार काटना।

जर्नल ऑफ नैशनल कैंसर इंस्टीट्यूट ने 2001 के अंक में डेनमार्क के 5 लाख सेलफोन इस्तेमाल करने वालों के आंकड़ों का अध्ययन कर रिपोर्ट छापी है जिसमें उन्हें ब्रेन ट्यूमर होने के कोई लक्षण नहीं मिले।

मैरीलैंड विश्वविद्यालय के भौतिकशास्त्री रॉबर्ट एल पार्क का इसी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन ऐसे किसी तथ्य की पुष्टि नहीं करता।

और जहां तक फॉर्वर्डेड मेल्स में यूटू्यूब की सेलफोन से मक्के का पॉपकॉर्न बनने जैसी फिल्मों का सवाल है, तो थोड़ी सी कंप्यूटर कारीगरी से सेलफोन के ऊपर रखे मक्के दानों को नीचे टेबल पर गिरते ही पॉपकॉर्न में बदल देना कोई बड़ी बात नहीं। और यह वीडियो दरअसल एक ब्लू टूथ बनाने वाली कंपन का विज्ञापन है। नीचे बटन पर क्लिक करके देखा जा सकता है।

7 comments:

संगीता पुरी said...

जानकारी के लिए धन्‍यवाद .. राहत मिली !!

Kulwant Happy said...

जानकारी भरपूर आपका लेख...

Kulwant Happy said...

जानकारी भरपूर आपका लेख...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जानकारी देने के लिए आभार!

Shri Sitaram Rasoi said...

श्रीमती आर. अनुराधा जी,
आप मेरा यह लेख पढ़िये और चाहें तो पूरी रिसर्च कीजिये। लेकिन सेलफोन के बारे अपनी राय बदलिये। http://flaxindia.blogspot.in/2012/01/blog-post_19.html
चाहें तो आई.आई.टी. के प्रोफेसर जी. कुमार से बात कीजिये। उपरोक्त लेख में मैंने उनकी शोध का भी जिक्र किया ह।

मेरी साइट पर आपको माइक्रोवेव पर भी लेख मिलेगा।

कैंसर पर भी बहुत सारी जानकारी मिलेगी। मैं आपको मेरे कुछ लेख आपकी साइट के लिए दे सकता हूँ। उसके लिए आप मुझसे बात करलें।

डॉ. ओ.पी.वर्मा
9460816360

Shri Sitaram Rasoi said...

इसे जरूर पढ़े। http://flaxindia.blogspot.in/2012/01/blog-post_19.html

डॉ. ओ पी वर्मा

Shri Sitaram Rasoi said...

इसे जरूर पढ़े। http://flaxindia.blogspot.in/2012/01/blog-post_19.html

डॉ. ओ पी वर्मा

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