Saturday, January 24, 2009

ऐसा क्यों हुआ?

मेरी एक मित्र, नहीं, बल्कि दफ्तर में सहकर्मी- नाम से क्या फर्क पड़ता है, सुविधा के लिए रानी कह लेते हैं- के करीबी सहयोगी ने कोई ढाई साल पहले मुझे एक दिन बताया कि रानी को मेरी सलाह की जरूरत है, मुझे उससे बात करनी चाहिए। मैं उससे मिली तो पता चला कि उसे भी स्तन कैंसर की आशंका में अस्पताल में कई टेस्ट करवाए गए हैं और रिपोर्ट ले-जाकर डॉक्टर को दिखाने में वह घबरा रही है। साथ ही वह उन रिपोर्ट्स की तफसील जानना चाहती थी।

मैंने रिपोर्ट्स पढ़ कर सुनाई, और जितना समझ में आया, उनका अर्थ भी बताया। संक्षेप में- उसे स्तन का कैंसर है जो कई अंगों में छुट-पुट फैल चुका है। मुझसे काफी देर तक वह बात करती रही। उसने अपनी इस और इससे पहले भी किसी आमो-खास तकलीफ की चर्चा किसी से नहीं की थी। वह है ह हिम्मती। यह उसका आत्मविश्वास था, जिसकी सभी तारीफ करते हैं। उस समय भी वह आत्मविश्वास से भरी थी और अपनी सेहत को लेकर उसे विश्वास था कि कुछ समय की बात है, वह फिर से स्वस्थ हो जाएगी।

आत्मविशवास अच्छा है, लेकिन अज्ञानी का आत्मविश्वास खतरा सामने देखकर आंखें बंद कर लेने जितना ही खतरनाक है, दुस्साहसिक है। मैं उसके साथ अस्पताल गई। डॉक्टर ने चौथी अवस्था का कैंसर बताया। इलाज के लिए कीमोथेरेपी का सुझाव दिया और कहा कि उसके नतीजे देखने के बाद आगे के इलाज की योजना बनाई जाएगी।

उसे सामान्य, छह साइकिल कीमोथेरेपी दी गई। उसके बाद डॉक्टरों का कहना था कि कैंसर अब भी काफी फैला हुआ है, इसलिए सर्जरी की सफलता पर संदेह है। फिर भी उसकी सर्जरी और रेडियोथेरेपी भी हुई, जो थोड़े विकसित स्तन कैंसर के पूरे इलाज का सामान्य हिस्सा है। फिर उसे पहले एक महीने और फिर हर तीन महीने में फॉलो-अप के लिए आने को कहा गया।

मेरा उस दफ्तर से तबादला हो गया। बीच-बीच में जब भी फोन पर रानी से या अपने किसी और पुराने सहयोगी से बातचीत होती तो यही समाचार मिलता कि वह ठीक है। मैं हमेशा संतोष महसूस करती कि इतने बुरे हालात के बाद भी इलाज से उसकी तबीयत काफी संभल गई है। मैं यह मान कर चल रही थी कि वह नियम से फॉलो-अप में जा रही है। न मानने का कारण ही नहीं था। इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपनी सेहत के प्रति इतनी गंभीर लापरवाही बरतेगा!

मगर मामला कुछ और था। इलाज ‘खत्म होने’ का अर्थ उसे यही समझ में आया कि वह ठीक हो गई है। इसलिए जब कोई आठ महीने बाद उसकी कमर और रीढ़ के निचले हिस्से में बर्दाश्त से बाहर दर्द होने लगा तब वह अस्पताल पहुंची। वहां, स्वाभाविक था, डॉक्टरों ने उसे डांट पिलाई और ढेर सारी जांचें फिर करवाने को कहीं। और तब पता चला कि कैंसर उसे भीतर तक खा चुका है, रीढ़ और कूल्हे की हड्डियों को सबसे ज्यादा।

इस समय उसकी हालत जानकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है। उसका आत्मविश्वास भी कैंसर को काबू करने में नाकाम रहा। अब हम सब दौड़-भाग कर रहे हैं। सरकारी अस्पताल की अनंत भीड़ में उसकी जांचें, इलाज- यानी पहले रीढ़ और कूल्हे की हड्डियों के लिए पैलिएटिव रेडियोथेरेपी और फिर हल्की कीमोथेरेपी और दूसरी दवाइयां आदि जल्द-से-जल्द करवाने के लिए संबंधित लोगों और विभागों में याचना से लेकर उसके बैंक खाते, तनख्वाह, ग्रैच्युटी आदि में किसी को नामांकित करवाने तक। मैं शायद जिक्र करना भूल गई, उसने शादी नहीं की है और अपने खातों में किसी को नामांकित तक नहीं किया है, जो उसके जाने के बाद (भगवान न करे) उसके पैसे पा सके।

मुझे गुस्सा आ रहा है उसके आत्मविश्वास पर। बल्कि मुझे तो लग रहा है कि वह उसकी मूर्खता थी। क्या कोई इंसान अपनी सेहत की तरफ से इतना लापरवाह हो सकता है? शुरू में जब उसे अपने स्तन में गांठ का पता चला तो वह उसे लेकर निश्चिंत बैठी रही, जब तक वह न भरने वाला घाव बदबूदार और दर्दनाक न हो गया। इतना कि उसके काफी करीब जाने पर दूसरों को भी गंध महसूस होने लगी।

माना, उसमें सहनशीलता है, पर ऐसी सहनशीलता! दूर से ही सलाम।

उसके बाद? सारा महंगा और लंबा और तकलीफदेह इलाज करवाने के बाद वह फिर वही अज्ञानी-आत्मविश्वासी रानी बन गई।

नतीजा? आठ महीने की निश्चिंत जिंदगी बिताकर फिर उस दलदल में कूद पड़ी है रानी, जिसे वह अपने और अपने चाहनेवालों के लिए समतल सड़क न सही, पर चलने लायक तो बनाए रख सकती थी।

सच है, जिस स्टेज में वह पहली बार अस्पताल गई थी, उसके बाद यह स्थिति तो आनी ही थी, पर इतनी जल्दी और इतनी दर्दनाक! किसी ने नहीं सोचा था।

10 comments:

Anonymous said...

your anger is showing in each and every word . desperate anger of being able to do nothing . i hope you are able to fget over this desperate anger and keep giving her your undivided love and attention without telling her what a fool she is because sometimes one is not a fool but one tries to live the life that is left to the hilt ignoring the disease . she probably knew in her heart that she will not survive and that is why she did not bother to continue the treatment . i agreeits wrong and also that your anger is justified . my heart felt good wishes for her and again bravo to you , because u keep living the same tension and agony of cancer again and again with every new patient you counsel .
regds
rachna

Anonymous said...

बहुत बढ़िया लिखा है

---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें

Anonymous said...

आप के लेखन से आप की बेबसी सॉफ झलक रही है. पढ़कर अच्छा नहीं लगा. बेचारी कैसे जी रही होगी.

मोहन वशिष्‍ठ said...

ओह माई गोड

अनिल कान्त said...

log chaahe kitne bhi aatmvishvaas se bhare hon lekin sankoch le doobta hai ......kabhi kabhi sankoch is tarah ke haalat paida kar deta hai ki kaboo mein nahi aat .....achchha lekha hai ....

Anil Kant
Mera Apna Jahaan

रंजू भाटिया said...

इतनी लापरवाही ..अपने स्वस्थ के साथ जब कोई पढ़ा लिखा इंसान करता है तो इस तरह का आक्रोश जो आपके लफ्जों से बह निकला है वह स्वभाविक है ..ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं ..आत्मविश्वासी बने पर इतना नहीं कि जान पर बन आए ..मुझे लगता है कि अभी इस विषय पर हम सब को जागरूक होने की बहुत आवश्यकता है ...

संगीता पुरी said...

अपने शरीर के मामलों में हमें लापरवाही नहीं करनी चाहिए....आपका आक्रोश जायज है।

सुप्रतिम बनर्जी said...

मैं टीवी पर अक्सर एक प्रोग्राम देखता हूं -- बॉडी रिवाइव। उसमें मुंबई एक डॉ. मुनीर ख़ान नैचुरोपैथी से इस तरह की लाइलाज बीमारियों के इलाज का दावा करते हैं। गूगल में उनके बारे में सर्च करने के बाद उनसे संपर्क किया जा सकता है। शायद आपकी सहकर्मी का भला हो जाए। मेरी शुभकामनाएं।

विष्णु बैरागी said...

रानी से कम और आपसे ज्‍यादा सहानुभूति। अब आप कर ही क्‍या सकती हैं। जो भी करना है, रानी को, डाक्‍टरों को और ईश्‍वर को करना है।
आपकी विवशता सचमुच में कातर कर रही है।

आर. अनुराधा said...

"मैं टीवी पर अक्सर एक प्रोग्राम देखता हूं -- बॉडी रिवाइव। उसमें मुंबई एक डॉ. मुनीर ख़ान नैचुरोपैथी से इस तरह की लाइलाज बीमारियों के इलाज का दावा करते हैं। "
Supratimji,
Is tarah ke dave krne walon se desh bharaa padaa hai. Mushkil yah hai ki ham jaise padhe-likhe (?) log bhi akhir waheen pahunch jate hain aur vishwas karne lagte hain ki yah sab daave sach honge. Zaroorat hai ki phir sochen is salaah ko kisi ur ko dene ke pahle.

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