Thursday, October 16, 2008

खून की सरल जांच कैंसर होने का पता देगी

खून की जांच कराई और पता लगा लिया कि शरीर के किसी हिस्से में कैंसर की शुरुआत तो नहीं हो रही! आज की तारीख में सभी तरह के कैंसरों के लिए तो नहीं पर कुछेक के लिए यह जांच सुविधा उपलब्ध है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्दी ही बाकी तरह के कैंसर में भी ऐसी ही सरल जांच से काम बन जाएगा। कैंसर जैसी जटिल बीमारी के बारे में यह सोच पाना कठिन है कि सबसे सरल तरीका सबसे प्रभावी भी हो सकता है। कैंसर की पहचान के लिए ढेरों बड़ी-बड़ी महंगी मशीनें और दुरूह जांच हैं जो कुछेक गिने-चुने शहरों और अस्पतालों में ही उपलब्ध हैं। ऐसे में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी के शिकागो में हुए हालिया सम्मेलन में रिसर्चरों ने राय जाहिर की है कि कैंसर का पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका हैं, खून की कुछेक बूंदें लेकर जांच करना।

खून से कैंसर का हाल जानने की तकनीक नई नहीं है। जिस तरह किसी महिला के खून में मौजूद प्रोटीनों की जांच करके उसके 10 दिन का गर्भ होने का पता भी लगाया जा सकता है, उसी तरह कैंसर की बेहद शुरुआती अवस्था में खून की जांच से ट्यूमर द्वारा छोड़ी गई कोशिकाओं पर मौजूद कुछ खास प्रोटीन की जांच करके उसकी मौजूदगी का पता लगाया जा सकता है। ज्यादातर ट्यूमर पास-पास जुड़ी हुई कई परतों वाली ऐपीथीलियल कोशिकाओं से बने होते हैं। कैंसर कोशिकाओं की खास बात यह है कि वे एक जगह टिकती नहीं है और ट्यूमर से छिटक-छिटक कर तेजी से खून के जरिए दूसरी जगहों पर फैलने की कोशिश करती हैं। एक और दिलचस्प बात यह है कि कैंसर कोशिकाएं अविकसित, अधूरी, कमजोर और तेजी से विभाजित होने और उसी तेजी से मरते जाने वाली कोशिकाएं हैं। ऐसे में किसी जगह ट्यूमर बनने के पहले ही उससे निकल कर खून में आई ये अलग तरह की ऐपीथीलियल कोशिकाएं तुरंत पहचानी जा सकती हैं।

खून की जांच से कैंसर होने का पता देने वाली उसमें घूम रही अविकसित ऐपीथीलियल कोशिकाओं की मौजूदगी का पता लगा लेना काफी नहीं है। वैसे ही जैसे किसी जगह दुश्मन के सैनिकों की मौजूदगी का पता लगाना काफी नहीं। अगर उन्हें पकड़ कर पूछताछ भी की जा सके, उनके इरादों, योजनाओँ का भी खुलासा हो पाए तो बात बने। इसलिए नए तरह के परीक्षणों से वैज्ञानिक अब उन कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन के प्रकार की पहचान करके यह भी पता लगा पा रहे है कि वह जिस ट्यूमर से निकल रहा है उसकी प्रकृति क्या है। क्या वह तेजी से बढ़ने वाला है, किसी और अंग में फैलने की स्टेज पर है, या धीरे-धीरे बढ़ रहा अपनी ही जगह पर बना हुआ है। इससे डॉक्टरों को हर मरीज की जरूरत के मुताबिक सही समय पर सही इलाज करने में मदद मिलेगी। ऐसी तरकीब इसलिए और भी जरूरी है कि कैंसर के सामान्य इलाज के जहरीले साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा और मारक हैं। ऐसे में इलाज जितना सटीक होगा उतना ही कारगर, सस्ता, सुगम और कम साइड इफेक्ट पैदा करने वाला होगा।

ये जानना रोचक है कि अब ट्यूमर से निकली कोशिकाओं के डीएनए, आरएनए और प्रोटीन में मौजूद बदलावों की जांच करके ट्यूमर के भीतर की खबर लेना आसान हो गया है। इन जांचों की सबसे बड़ी खासियत है इनका आसान और सहज होना। आजकल सबसे आम जांच चलन में है फाइन नीडिल एस्पिरेशन साइटोलॉजी तकनीक या एफ एन ए सी। सरल शब्दों में कहें तो ट्यूमर की जगह से कुछ कोशिकाएँ सुई के जरिए खींच कर निकालना और फिर माइक्रोस्कोप के नीचे उनकी पड़ताल करके उनके आकार-प्रकार, रचना, संख्या आदि का पता लगाना। लेकिन यह जांच तभी की जा सकती है जबकि पहले ही कैंसर का अंदेशा हो, ट्यूमर की जगह का पता हो, वह कम-से-कम इतना बड़ा हो कि उसमें से कोशिकाएं सुई के जरिए निकाली जा सकें और सुई उस तक पहुंच सके। इस प्रक्रिया में एक खतरा कैंसर कोशिकाओं के जल्द फैलने का भी है। ट्यूमर के भीतर तक पहुंची सुई के सहारे कैंसर कोशिकाएं अब तक अनछुई परतों तक पहुंच कर आदतन वहां भी पैर जमाना शुरू कर सकती हैं। लेकिन रक्त निकालकर जांच करने में इस बात का कोई खतरा नहीं होता।

खून की जांच पर आधारित इन निदान तकनीकों से कैंसर की पहचान में कोई बड़ा बदलाव आ गया हो, ऐसा समझना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन डॉक्टरों को इनसे बहुत उम्मीदें हैं। कैंसर के बारे में बुनियादी बात यही है कि इसकी पहचान जितनी जल्दी होती है, इसका इलाज उतना ही सरल, कम खर्चीला और सफल होता है और इसके दोबारा होने की संभावना उतनी ही कम होती है। इसलिए इन तकनीकों के ज्यादा सटीक और भरोसेमंद बनाने की कोशिशें जारी हैं।

2 comments:

Anonymous said...

आप के द्वारा दी गई जानकारी से लोगों में कैसर से रोकथाम की अवेयरनैस बढ़ेगी।
अभिव्यक्ति भी बहुत बढ़िया लगी।
अभी अभी किसी जगह से जलेबियां खा कर आया हूं---खूब रंग मिला हुआ था ----कईं जगह पर शिष्टाचार के कारण मना भी नहीं किया जा सकता यह जानते हुये भी कि ये क्लर्स कारसीनोजैनिक हैं......ऐसे और भी कितनी वस्तुयें हम लोग इस आधुनिकता की हौड़ में इस्तेमाल किये जा रहे हैं....बस ऊपर वाले का ही या यूं कह लें कि जिस ब्लड-टैस्ट का आप ने ज़िक्र किया है, जब ये टैस्ट पूर्णतया बाज़ार में आ जायेगा तो लोगों को इस टैस्ट का सहारा लेना ही पड़ेगा।
जाते जाते बस यही ध्यान आ रहा है कि किसी तरह से इस दुनिया से तंबाकू का सफाया हो जाये तो बात बने।
बहरहाल, आप की पोस्ट बहुत ज्ञानवर्धक है।
शुभकामनायें।

singleherbs said...

bahut hi achhi janakari de rahe hai aap , aabhaar

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