Wednesday, October 29, 2008

गुलाबी रिबन में पुरुष अजीब नहीं लगते

गुलाबी रिबन के बारे में पिछली पोस्ट क्या आपने आज कुछ गुलाबी पहना है? पर एक टिप्पणी थी – ‘गुलाबी रंग में पुरुष - शायद कुछ अजीब लगे।‘ उसके जवाब में अपने ई-मेल बॉक्स पर मिली यह दिलचस्प और सार्थक कहानी आपके साथ बांट रही हूं।

एक अधेड़ उम्र का सुदर्शन पुरुष कैफे में पहुंचा और शांति से कोने की एक टेबल पर बैठ गया। कुछ देर में उसका ध्यान बगल वाली टेबल पर बैठे कुछ नौजवानों की तरफ गया जो उसे ही देख कर हंस रहे थे। फिर अचानक उसे कुछ ख्याल आया और वह समझ गया कि वे क्यों हंस रहे हैं। उसे याद आया कि उसने कोट के कॉलर वह गुलाबी रिबन टांका था, जिसे देख कर वे नौजवान उसका मज़ाक उड़ा रहे थे।

थोड़ी देर तो वह उनकी ठिठोली को नज़रअंदाज़ करता रहा। फिर रिबन पर अंगुली रखी और उनमें से सबसे उच्श्रृंखल लगने वाले लड़के की तरफ देख कर पूछा- “क्या इस पर हंस रहे हो?”

वह लड़का बोला,- “माफ करें, लेकिन नीले कोट पर यह गुलाबी रिबन बिल्कुल नहीं जंच रहा है।“

उस अधेड़ ने उसे इशारे से बुलाया और पास बैठने का न्यौता दिया। नौजवान असहज होकर उसके पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। उस अधेड़ ने धीमी आवाज़ में कहा- “मैं स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए, अपनी मां के सम्मान में इसे पहनता हूं।”

“मुझे अफसोस है। क्या स्तन कैंसर ने उनकी जान ले ली थी?”

“नहीं, वह मरी नहीं हैं। लेकिन शैशवकाल में उनके स्तनों से मेरा पोषण हुआ, और लड़कपन में जब भी मैं डर या अकेलापन महसूस करता था तो अपना सिर उन पर रख कर आश्वस्त हो जाता था। मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं।”

“अच्छा!।”

“मैं यह रिबन अपनी पत्नी के सम्मान में भी पहनता हूं।”

“उम्मीद है, अब वे भी ठीक हो गई होंगी?”

“हां, उन स्तनों ने 23 साल पहले मेरी प्यारी सी बेटी को पोषित किया, दिलासा दिया। वे हमारे स्नेहिल संबंधों में खुशी का स्रोत रहे हैं। मैं उनका भी आभारी हूं।”

“और आप इसे अपनी बेटी के सम्मान में भी पहनते होंगे?” नौजवान ने उकता कर कहा।

“नहीं। उसके सम्मान में इसे पहनने के लिए बहुत देर हो चुकी है। मेरी बेटी एक माह पहले स्तन कैंसर से मर गई। उसका ख्याल था कि इस कम उम्र में उसे स्तन कैंसर नहीं हो सकता। इसलिए जब एक दिन अचानक उसने गांठ महसूस की तो भी वह चैतन्य नहीं हुई, उसे नज़रअंदाज़ करती रही। उसे लगा कि चूंकि उसे दर्द नहीं होता है, उसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।”

इस कहानी से विचलित नौजवान बरबस बोल उठा- “ओह, मुझे बहुत दुख हुआ जानकर।“

अधेड़ बोला- “अब मैं अपनी बेटी की याद में गर्व से यह रिबन लगाता हूं। यह मुझे, दूसरों को इस बारे में सतर्क और जागरूक करने में मदद करता है। अब घर जाकर अपनी पत्नी, मां, बेटी, रिश्तेदारों और मित्रों को इस बारे में बताना।

और यह लो ”- कहते हुए उस अधेड़ ने अपनी कोट की जेब से एक गुलाबी रिबन निकाल कर उसे थमा दिया।

11 comments:

Anonymous said...

excellent post
Rachna

Hemant Pandey said...

behtareen abhivyakti hai...........

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Very good post -
Only when some one you love & loose, then only
such losses open the eyes. But we must be aware before that.

MANVINDER BHIMBER said...

excellent post

ATUL said...

excellent post..thanks for the nice blog

आर. अनुराधा said...

यह पोस्ट पढ़ने-गुनने के लिए शुक्रिया।
उम्मीद है, यह रुचि और समझ दूर तलक पहुंचेगी।
पर मैंने एक दिलचस्प तथ्य नोट किया है- अब तक की सभी टिप्पणियां रोमन में हैं! कोई खास कारण?

malvika dhar said...

firdaus khan sirf musalman ,hindu aur gazal,nazam per likhti hai.yeh manvadhikar ki baat karti hai per khud kitni aloktantrik aur kattar hai iska udaharan dena chahti ho.maine inke blog per likha -rajthakre deshdrohi hai yeh khabar nahi vichar hai,fatva hai,gyan hai.iske bahane apni pith mat thoke .news aur views ke beech fark ko samjhe.varna majak ban jayengi.inhone mera comment to nahi diya sare kattarpanthiyo ka jarur diya.yeh hai inka secular muslim chehra.

gsbisht said...

अनुराधा जी आपका ब्लॉग का बिषय जनहित है. आपको बहुत बहुत धन्यवाद इस पहल के लिए.

श्रुति अग्रवाल said...

अनुराधा, कहानी है या सच्चाई, पता नहीं। लेकिन महिला के स्तनों को इतना सम्मान देना...दिल को छू गया। क्योंकि सृजन करने वाली माँ जब बच्चे को दुग्धपान कराती है तो जीवन सफल मानती है। पुरुष जो अकसर इन स्तनों को गंदी नजरों से देखता है वह शायद अहसास ही नहीं कर पाता कि यहीं से उसने अमृत पान किया है...लो मैं भटक गई। लेकिन यह सच है कि माँ यदि बच्चे को सही तरह से स्तन पान करवाएँ तो कैंसर होने की संभावना काफी कम हो जाती है। वहीं बच्चे को दूध पिलाने से भी कैंसर की संभावना कम होती है। पाश्चात्य देशों में माँ दूध पिलाने से बचती हैं, इसे भी वहाँ के डॉक्टर कैंसर होने की वजहों में से एक मानते हैं। इस विषय पर तुम्हारी पोस्ट का इंतजार रहेगा।

vijay kumar sappatti said...

Aaj pahli baar aapke blog par aaya hoon , pad kar bahut accha laga.

is katha ne meri aankho mein aansu la diye. ek saal pahle mere brother -in-law ka ladka ,12 saal ki umr mein cancer se gujar gaya ..
aapki jagurakhta ki pahal ko
bahut bahut badhai .

main bhi poems likhta hoon , kabhi mere blog par bhi aayiye.
my Blog : http://poemsofvijay.blogspot.com


regards

vijay

Atul Sharma said...

पहले तो माफी चाहूंगा कि बहुत देर बाद मैं आपके ब्‍लॉग पर पहुंचा जबकि आखिरी कमेंट भी काफी पहले लिखा हुआ है। अनेकों जगह आपके कमेंट पढे जो अक्‍सर बहुत छोटे पर सारगर्भित होते हैं।
आपका यह लेख मनोरंजक भी है और चेतावनी भरा भी, जैसा कि इसे होना चाहिए। यह हमारा शरीर है और हमें इसका ख्‍याल रखना चाहिए। यदि हम लापरवाह होगें तो सजा तो भुगतनी ही होगी। एक महत्‍वपूर्ण हिदायत को मनोरंजक तरीके से देने के लिए धन्‍यवाद।

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