Sunday, November 10, 2013

घर- 1


किसी के घर पहली बार जाओ तो खान-पान की औपचारिकताओं के बाद अक्सर सबसे आम बात होती है कि आओ, अपना घर दिखाऊं। किसी ने अपने घर में कोई खास कारीगरी की या करवाई है तो अलग बात है, वरना कमरे कितने बड़े हैं, वुडवर्क कितना खर्च करके करवाया, झूमर, बच्चों के कमरे का खास डिजाइन, बिस्तर-तकिए, रसोई और बाथरूम में नए-नए उपकरण- यह सब तो अपनी-अपनी जरूरत, सुविधा, सामर्थ्य और शौक की बात है। इसमें कुछ भी प्रदर्शनीय मुझे नहीं लगता।

बचपन में मेरी एक सहेली की मां सुबह के समय किसी मेहमान को घर के अंदर आने नहीं देती थी कि सफाई नहीं हुई है, अभी नहीं आना।

मैं अपने घर के बारे में सोचकर कभी भावुक या रोमांचित नहीं हुई, सपनीले संसार की यात्रा पर नहीं निकल गई। घर मेरे लिए उपयोग की वस्तु, जरूरत की जगह है। एक आश्रय है, छत है, जिसके नीचे मैं सुरक्षित हूं, जरूरत की चीजें रखी हुई हैं, जिन्हें यथासमय उपयोग किया जा सकता है। थक जाऊं तो आराम कर सकती हूं, किसी से मिल सकती हूं, न मिलना हो तो एकांत पा सकती हूं। हर मौसम में शरीर को सुरक्षित, आरामदेह स्थिति दे सकती हूं।

घर को लेकर कभी मेरे मन में कभी स्वामीत्व या अधिकार का भाव भी नहीं आया कि यह मेरा घर है। बल्कि हमेशा कर्तव्यबोध रहा कि उसे दूसरे साझीदारों और मेहमानों के लिए सुविधाजनक रख पाऊं, जैसा कि मैं खुद चाहती और अक्सर पाती हूं।

घर के साथ सेंस ऑफ बिलॉन्गिंग भी लोग महसूस करते हैं। वह शायद अपने स्वामीत्व वाले घर में रहने से महसूस होता होगा। अब तक ऐसे किसी घर में रहने का मौका नहीं मिला। शायद इसी लिए दो मकानों का मानिकाना होने के बावजूद ऐसा कोई भाव किसी मकान को लेकर नहीं आया- न अपने, न किराए के और न सरकारी मकानों में। 

एक बार किसी ने पूछा था- व्हेयर डूयू बिलॉन्ग टु?”  मुंह से बेसाख्ता निकल गया-आई ऐम ऐन इंडिविजुअल ऐंड आई बिलॉन्ग टु माई फैमिली। इस परिवार में मकान निश्चित रूप से शामिल नहीं है।

घर का सपना कभी देखा तो सिर्फ इतना कि छोटा सा ही सही, लकड़ी की बाड़ से घिरा एक बगीचा, जिसमें कई फलों के पेड़ और कुछेक फूलों के पौधे क्यारियों में लगे हों।

खिड़की के शीशे चमकदार हों, न हों, पर जरूरत की चीजें हाथ बढ़ाने पर मिल जाने वाले सुरक्षा और सहूलियत भरे फंक्शनल स्पेस में, सिमटे/गायब परदों वाले खुले-से निवास पर आपका हमेशा, किसी भी वक्त स्वागत है।

3 comments:

Sheetal said...

apne sach hi likha hai maam kai log jhuthi shan k karan na jane kitna kharch ghar ko sajane me kar dete hai...........

Sheetal said...
This comment has been removed by the author.
Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता said...

एक आश्रय है, छत है, जिसके नीचे मैं सुरक्षित हूं, जरूरत की चीजें रखी हुई हैं, जिन्हें यथासमय उपयोग किया जा सकता है। थक जाऊं तो आराम कर सकती हूं, किसी से मिल सकती हूं, न मिलना हो तो एकांत पा सकती हूं। हर मौसम में शरीर को सुरक्षित, आरामदेह स्थिति दे सकती हूं।

बिलकुल सही है :)
घर का सही डिस्क्रिप्शन :)

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