Wednesday, November 16, 2011

विज्ञान या स्वास्थ पत्रकार को क्या नहीं करना चाहिए कैंसर की रिपोर्टिंग या तमाशा

कैंसर ब्रेक-थ्रू की खबरें आए दिन जोर-शोर से देते रहने वाले पत्रकार यह भी करते हैं। एक नमूना देखिए।

लंदन की प्रतिष्ठित डेली मेल में एक हालिया खबर है कि रेड वाइन से ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम में मदद मिल सकती है। "लैबोरेटरी में परीक्षणों से पता चला है कि अंगूर के छिलके में पाया जाने वाला रसायन ज्यादातर मामलों में इस बीमारी को रोक सकता है।"

खबर में कहानी कुछ इस तरह बताई गई है कि किसी खाद्य पदार्थ में कोई खास रसायन होता है जिसके किसी खास गुण को प्रयोगशाला की पेट्री डिश में देखा गया। इस तरह साबित होता है कि वह खाद्य पदार्थ कैंसर को खत्म करता है।

रेड वाइन में रेसवेराट्रोल नाम का रसायन पाया जाता है जो कि अंगूर के छिलके में होता है। पाया गया है कि यह रसायन क्विनोन रिडक्टेज़ नाम के एंजाइम की सक्रियता को बढ़ाता है, जो कि ईस्ट्रोजेन हार्मोन के एक व्युत्पन्न को वापस ईस्ट्रोजन में बदल देता है। देखा गया है कि वह व्युत्पन्न डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है और डीएनए को नुकसान होने से उसमें म्यूटेशन हो सकता है और म्यूटेशन से कैंसर होने की संभावना होती है। इस तरह पत्रकारों ने यह साबित कर दिया कि रेड वाइन पीने से कैंसर की रोकथाम होती है।

यह कहानी है, एक अनुसंधान से मिले तथ्यों की एक पत्रकार के नजरिए से ‘खबर’ की। वास्तविक जगत में देखें तो रेड वाइन में उस जरा से रसायन के मुकाबले कई हजार गुना ज्यादा मात्रा में कई और रसायन होते हैं, जिनके किसी व्यक्ति के बड़े से विविधता भरे शरीर पर कई तरह के असर होते हैं। उसका सबसे महत्वपूर्ण रसायन अल्कोहल है, जो टूट कर एसीटेल्डिहाइड बनाता है जो कि खुद डीएनए को बड़ा नुकसान पहुंचाता है। यानी अल्कोहल भयानक रूप से कैंसरकारी है। इसकी छोटी सी मात्रा भी डीएनए को नुकसान पहुंचाने का माद्दा रखती है।

तो, खबर को क्या इस नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए? क्या यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि इस खबर को लिखने-छापने वाला किसी रेड वाइन बनने वाली कंपनी के हाथों बिक गया?

सबसे मजेदार तथ्य तो मैंने यह खोज निकाला कि इंग्लैंड के डेली मेल अखबार के ऑनलाइन एडीशन में यह खबर 30 सितंबर 2011 को आई है। और वहीं के टेलीग्राफ के ऑनलाइन संस्करण में यह सात जुलाई 2008 को ही छप चुकी है। तो क्या पुरानी खबरे दोबारा लिखने के लिए किसी पत्रकारीय आचार-संहिता को देखने की जरूरत नहीं है? पाठक तो विद्वान पत्रकारों के सामने मूर्ख हैं, लेकिन ये पत्रकार खुद इस तरह मूर्ख बन रहे हैं, क्या उन्हें यह पता भी है?

2 comments:

Ek ziddi dhun said...

संयोग है कि मैं शराब नहीं पीता हूं हालांकि इसका आकर्षण मुझमें काफी ज्यादा है। डाक्टरों ने दो साल पहले मुझे किसी भी तरह का नशा न करने की हिदायत दी थी। हालांकि पीने वाले अपने अंदाज में यह बताते ही हैं कि शराब पीने से सारे रोग कट जाते हैं। लेकिन रेड वाइन को लेकर कई-कई बार खबरें पढ़कर इसके बेहद स्वास्थ्यवर्द्धक होने का भ्रम मुझे भी हो गया था। दिल, न्यूरो-मसल मसले आदि के बाद अब कैंसर को रेड वाइन से रोकने का दावा पढ़ रहा हूं।
आपके दोनों शक ठीक हैं- एक तो रिपोर्टर कोई भी हेडिंग बनाने वाली बात मूर्खतापूर्ण तरीके से छाप ही देते हैं और दूसरा बड़ी कंपनियां ऐसा कराने के तरीके भी आजमाती ही हैं।

Shri Sitaram Rasoi said...

इसे जरूर पढ़ें। http://flaxindia.blogspot.in/2011/12/budwig-cancer-treatment.html
डॉ. ओ पी वर्मा

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